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________________ (५७) येनायोजि न वेश्म स्थिरमर्थविधौ विवेकिना जिनवेश्म। . सविजयतां रविकीर्तिः कविताश्रितकालिदासभाराविकीर्तिः । पंचाशत्सु कलौ काले पसु पंचशतेषु च समासु समतीतासु शकानामपि भूभुजाम् ॥ . इसमें रविकीर्तिने आपको कालिदास और भारवि सरीखा कीर्तिशाली कवि कहा है और मन्दिर वननेका समय शकसंवत् ५५६ वतलाया है । इससे मालूम होता है कि, कालिदास शक ५५६ से भी बहुत पहिले हो गये हैं। रविकीर्तिके समयमें उनकी किर्ति देशव्यापिनी हो चुकी थी। इसलिये उनका जिनसेनसे साक्षात्कार नहीं हो सकता है। __ मेघदूत संस्कृतके सर्वोत्तम काव्योंमें गिना जाता है और वास्तमें वह है भी वहुत मनोहर । तव रविकीत जिसकी कीर्तिकी अपने लिये उपमा देकर आपको गौरवान्वित मानते हैं, उत्त कालिहासको छोड़कर. मेघदूतको किसी अप्रसिद्ध कालिदासका बनाया हुआ कल्पित करना हमें तो ठीक नहीं मालूम होता है । योगिराट् पंडिताचार्यकी उक्त कया यों तो पढ़नेमें अच्छी और प्रभावशालिनी मालूम होती है, परंतु उसमें जो कालिदासके प्रति जिनसेनस्वामीकी असूया और असत्यभाषणता प्रगट की गई है, वह एक पूज्य ग्रन्थकारके चरितके सर्वथा अयोग्य है । उससे प्रशंसा होना तो दूर रहा, भगवान् जिनसेन जैसे विरागी मनोनिग्रही हात्माके पवित्र चरित्रमें एक बड़ा भारी लांछन लगता है। . .
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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