SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४८ ) ज्यों ही इसने मस्तक नवाया, त्यों ही दुष्ट कमठने अपने सिरपर ( तपस्याके लिये ) रक्खी हुई शिलाको पटककर मरुभूतिका प्राण ले लिया । कुछ समय पीछे कमटकी आयु भी पूरी हुई । तदनन्तर इन दोनोंने नाना योनियों में नाना जन्म धारण किये और मरुभूतिके जीवने प्रत्येक जन्ममें कमटके द्वारा प्राण खोकर · अन्तमें वाराणसीके महाराज विश्वसेनकी ब्राह्मी (वामा ) महादेवीके उदरसे पार्श्वनाथ तीर्थकरका जन्म धारण किया । तथा कमठने शम्बर नामके ज्योतिपीदेवकी पर्याय पाई । जिस समय पार्श्वनाथ भगवान् निष्क्रमण कल्याणके पश्चात् प्रतिमायोग धारण किये हुए विराजमान थे, उस समय शम्बर आकाशमार्गले. भ्रमण करता हुआ वहांसे निकला और अपने पूर्व वैरको स्मरण करके उनको कष्ट देने लगा । " बस इसी कथानकको लेकर पार्श्वम्युदय रचा गया है । इसमें शम्बर देवको यक्ष, ज्योतिर्भवनको अलकापुरी, और यक्षकी वर्षशापको शम्बरकी वर्षशाप मान ली है। इसके सिवाय पूर्व और वर्तमान भवोंकी वर्तमानरूपमें ही कल्पना की है। 1 जब मेघदूतके कथानक में और पार्श्वचरित्रके कथानक में जमीन आसमानका अन्तर है, तब मेघदूतके चरणोंको लेकर पार्श्वचरित्रका १ इससे जान पड़ता है कि प्रथमानुयोगकी कथाओं में कवि अपनी रचनाको चमत्कृतिपूर्ण और हृदयग्राहिणी बनाने के लिये कुछ न्यूनाधिक्य भी कर सकता है । कथाकी मूलभित्ति मात्रका आश्रय रखके वह उसमें मनमाने प्रसंगों की कल्पना कर सकता है । महाकवि कालिदास, भवभूति आदिकी रचनाओं में भी यह बात देखी जाती है । जिनं महाभारतादि ग्रन्थोंकी मूल कथाएं लेकर .. उन्होंने अपने ग्रन्थ बनाये हैं, उनसे उनके आख्यानोंका पूरा २ सादृश्य नहीं है ।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy