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________________ (४३) कवि भिन्न २ हैं। दोनोंकी कान्यशैली, कथानक कहनेका ढंग उत्प्रेक्षाएँ, कल्पनाएँ, आदि सभीमें बहुत बड़ा अन्तर दिखलाई देता है। . यहां विषयान्तर होता है तो भी हम अपने पाठकोंसे क्षमा मागकर यह कह देना भी आवश्यक समझते हैं कि, हरिवंशपुराणको और पद्मपुराणको जो कई लोगोंने काष्ठासंघी आचार्योंका वनाया हुआ समझ रक्खा है, सो केवल भ्रम है । क्योंकि जिस समय ये दोनों ग्रन्थ बने हैं, उस समय काष्ठासंघका सूत्रपात भी नहीं हुआ था। क्योंकि काष्ठासंघकी उत्पत्ति दर्शनसारके मतसे. शकजन्म संवत् ८४२ (शकमृत्यु ७५३ ) में जिनसेनके सतीर्थ. विनयसेनके शिष्य कुमारसेन द्वारा हुई है, जैसा कि हम पूर्वमें लिख चुके हैं ( देखो पृष्ठ ३७ ) और हरिवंशपुराण शकसंवत्.७०५ में वना है, तथा पद्मपुराण उससे भी पहले वीर नि० संवत् १२०३ में अर्थात् शकसंवत् ५९८ में रचा गया है। हरिवंशपुराणके कतीने रविपेणाचार्यकी स्तुति की है, इससे भी मालूम होता है कि वह हरिवंशसे भी पहलेका है । अतएव पद्मपुराण और हरिवंशपुराण काष्ठासंघी नहीं है। इनका कथाभाग उत्तरपुराणसे नहीं १. यथा-कृतपद्मोदयोद्योता प्रत्यहं परिवर्तिता। , . मूर्तिकाव्यमयी लोके रवेरिव रवेप्रिया ॥३४॥ वरांगनेव सागैर्वरांगचरितार्थवाक् । कस्य नोत्यादयेदूगाढमनुरागं स्वगोचरम् ॥३५॥ - इन श्लोकोंसे यह भी मालूम होता है कि, रविपेणस्वामीने पद्मपुराणके सिवाय वरांगचरित्र नामका भी एक बहुत उत्तम काव्य बनाया है। . . . .
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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