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________________ (३८) वर्तमानमें जो शकसंवत् चलता है, वह शकविक्रमके जन्मसे चलता है और यहां जो ७५३ शक बतलाया है, वह मरणका है। अतएव शकविक्रमकी (शालिवाहनकी) अवस्थाके ८९ वर्ष इसमें जोड़ें देना चाहिये । इस तरह ७५३+८९८४२ शकसंवत् काठासंघकी उत्पत्तिका होता है। इससे सिद्ध होता है कि, शक ८४२ से पहले और ८२० के पीछे किसी समय गुणभद्रस्वामीको मृत्यु हो चुकी होगी। शक ८२० के पीछे कहनेका कारण यह है कि, महापुराणकी समाप्ति उन्होंने शक ८२० में की है, ऐसा पहले कहा जा चुका है। आत्मानुशासन, जिनदत्तचरित्र आदि कई ग्रन्थ गुणमद्रस्वामीके और भी हैं, परन्तु उनकी प्रशस्तियोंके अभावसे यह नहीं कहा जा सकता है कि, वे महापुराणसे पहले वन चुके थे, या पीछेके हैं। यदि पछिके हों, तो शक ८२० के और भी कई वर्ष पीछे तक गुणभद्रस्वामीकी अवस्थाकी निश्चित अवधि बढ़ाई जा सकती है। प्रारंभमें कहा जा चुका है कि, मंडलपुरुपकृत चूडामणि निघंटुमें गुणभद्रस्वामीके ग्रामका नाम लिखा है। क्या आश्चर्य है, जो उक्त ग्रन्थसे उनके जन्म तथा दीक्षादिके समयका भी निश्चित ज्ञान हो जाय। ग्रन्थरचना। जिनसेनस्वामीके बनाये हुए आदिपुराण और पार्श्वभ्युदयकाव्य ये दो ग्रन्थ तो प्रसिद्ध तथा प्राप्त हैं, जयधवला टीका (शेषभाग) सर्वत्र प्राप्त नहीं है, परन्तु उसका अस्तित्व है । मूडविद्रीके सुप्रसिद्ध १.इसीलिये त्रिलोकसारमें लिखा है कि,वीर निर्वाणके६०५वर्ष और५महिनेके वाद शकराजा हुआ। वर्तमान शकसंवत् १८३४ में ६०५ जोडनेसे २४३९ बीरनिर्वाण संवत् हो जाता है।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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