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________________ ( ३१ ) किसी आचार्यने किया है, इसलिये जयधवलाको ' श्रीपालसम्पादिता' विशेषण दिया है । कपायप्राभृतके मूल गाथासूत्र ( १८३ ) श्लोक और विवरणसूत्र ( १०३ श्लोक ) गुणधरमुनिकृत हैं, चूर्णिसूत्र ( ६००० श्लो० ) यतिवृपभाचार्यकृत हैं और वार्तिक ( ६० हजार लो० ) बहुत करके वप्पदेवगुरुकृत हैं । वीरसेनीया टीकाका प्रथमस्कन्ध जो कि २० हजार श्लोकका है वीरसेनस्वामीने बनाया है, और शेष भाग उनके शिष्यने । इसके लिये इन्द्रनन्दिकृत श्रुतावतार कथामें भी स्पष्ट शब्दांम लिखा है:-- ------ आगत्यं चित्रकूटात्ततः स भगवान्गुरोरनुज्ञानात् । माटग्रामे चात्रानतेन्द्रकृतजिनगृहे स्थित्वा ।। १७८ ।। व्याख्याप्रज्ञप्तिमवाप्य पूर्वपट्खण्डतस्ततस्तस्मिन् । उपरिमबन्धनाद्यधिकारैरष्टादशविकल्पैः ।। १७९ ।। सत्कर्मनामधेयं पष्ठं खण्डं विधाय संक्षिप्य । इति पण्णां खण्डानां ग्रन्थसहस्रद्विसप्तत्या ॥ १८० ॥ प्राकृतसंस्कृतभाषामियां टीकां विलिख्य धवलख्याम् । जयधवलां च ऋपायप्राभृतके चतसृणां विभक्तीनाम् ॥ १८१ ॥ विंशतिसहस्रसद्ग्रन्थरचनया संयुतां विरच्य दिवम् | यातस्ततः पुनस्ताच्छप्यो जयसेनगुरुनामा || १८२ ॥ १. इसका पहले १७६ और १७७ वें श्लोकसे सम्बन्ध है, जो पृष्ठ १० में छप चुके हैं।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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