SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (९) तत्र वित्रासिताशेपप्रवादिमदवारणः ।। वीरसेनाग्रणीवीरसेनभट्टारको वभौ ॥ इत्यादि । [उत्तरपुराण हरिवंशपुराणकारने अपनी जो श्लोकबद्ध गुरुपरम्परा दी है, विस्तारके भयसे हम उसे समग्र प्रकाशित न करके केवल आचार्योंके नाम मात्र देते हैं:__ अंगज्ञानधारियोंके पश्चात्-नयंवरऋपि, श्रुतऋपि, श्रुतिगुप्त, शिवगुप्त, अर्हद्वलि, मन्दरार्य, मित्रवीर, बलदेव, वलमित्र, सिंहरल, वीरवित्, पद्मसेन, व्याघहस्ति, नागहस्ति, जितदंड, नन्दिपेण, दीपसेन, धरसेन, सुधर्मसेन, सिंहसेन, सुनन्दिपेण, ईश्वरसेन, सुनन्दिपेण, अभयसेन, सिद्धसेन, अमयसेन, भीमसेन, जिनसेन, शान्तिपेण, जयसेन, अमितसेन, कीर्तिपेण और हरिवंशपुराणके कर्ता जिनसेन । महापुराणमें भगवान् जिनसेनने यद्यपि अपनी क्रमवद्ध गुरुपरम्परा नहीं दी है, परन्तु मंगलाचरणमें जिन २ आचार्योंको नमस्कार किया है, उनमेंसे समन्तमद्र, सिद्धसेन, यशोभद्र, शिवकोटि, वीरसेन और जयसेन ये छह आचार्य सेनसंवके मालूम होते हैं। क्योंकि भद्र और सेन ये दो शब्द सेनसंवके आचार्योंके नामके साथ ही प्रायः रहते हैं। इनमसे समन्तभद्र और शिवकोटिका उल्लेख तो ऊपर हो चुका है, और वीरसेन तथा जयसेन जिनसेनके गुरुआम है, जैसा कि आगे प्रगट किया जायगा । शेप रहे सिद्धसेन और 1. यशोमद्र, सो इन्हें समन्तभद्रके पीछेकी गुल्परिपाटीमें गिनना चाहिये।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy