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________________ (१६८) स्वामिसमन्तभद्राचार्यने फिर अनेक देशोंमें विहार किया, अनेक एकान्त वादियोंको परास्त करके उन्हें अनेकान्त पक्षकी महिमा दिखलाई, जहां तहां जैनधर्मकी विजयदुन्दुभी वजाई, विद्वत्तापूर्ण अनेक अन्योंकी रचना की और अन्तमें कठिन तपस्या करके एक वनमें समाधि लगाये हुए शरीर त्याग कर दिया। मैसूर राजमें श्रवणवेलगुल नामका जैनियोंका प्रसिद्ध तीर्थस्थान है, जिसे लोग जैनबद्री भी कहते हैं। वहांपर वाहुबलि या गोमठस्वामीकी एक अद्वितीय और सुविशाल प्रतिमा है । जिस पर्वतपर यह प्रतिमा है, उसे विन्ध्यगिरि कहते हैं । विन्ध्यागिरिक एक जिनमन्दिरमें एक विशाल शिलापर " मल्लिपणप्रशस्ति " नामका वड़ा भारी लेख खुदा हुआ है, जिसकी नकल 'प्रो० राइस' नामके एक अंग्रेजने अपनी इस्क्रिप्शन ऐट् श्रवणबेलगोला नामकी पुस्तकमें प्रकाशित की है। उक्त लेखमें भगवान् समन्तभद्रके विषयमें निम्नलिखित परिचय मिलता है, वन्यो भस्मकभस्मसात्कृतिपटुः पद्मावतीदेवतादत्तोदात्तपदः स्वमन्त्रवचनव्याहूतचन्द्रप्रभः । आचार्यः स समन्तभद्रगणभूयेनेह काले कलों जैनं वर्त्म समन्तभद्रमभवद्भद्रं समन्तान्मुहुः॥ चूर्णिका-यस्यैवं विद्यावादारम्भसंरम्भविज़म्भिताभिव्यक्तयः सूक्तयः पूर्व पाटलिपुत्रमध्यनगरे भेरी मया ताडिता पश्चान्मालवसिन्धुढक्कविषये काञ्चीपुरे वैदिशे। प्राप्तोऽहं करहाटकं बहुभट विद्योत्कटं सङ्कटम्
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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