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________________ (७) - ऊपर जिन. चार संवांका नाम बतलाया गया है, उनमेंसे सेनसंघ नामक वंशमें हमारे दोनों चरित्रनायकोंने दीक्षा ली थी। सेन संघकी किसी विश्वासपात्र पट्टावलीके प्राप्त नहीं होनेसे हम सेनसंधके प्रारंभसे उक्त चरित्रनायकोंतककी गुरुपरम्परा नहीं बतला सकते हैं । परन्तु विक्रान्तकौरवीयनाटकमें हस्तिमल्लकविने जो अपनी प्रशस्ति लिखी है, उससे मालूम होता है कि, गन्धहस्तिमहाभाप्यके कर्ता स्वामीसमन्तभद्रके वंशमें ही भगवान् जिनसेन तथा गुणभद्र हुए हैं। उसमें लिखा है कि, समन्तभद्रस्वामीके शिवकोटि और शिवायन नामके दो शिप्य हुए और उन्हींकी परिपाटीमें श्रीवीरसेन जिनसेन तथा गुणभद्र अवतीर्ण हुए। उस प्रशस्तिका कुछ भाग यह है: तत्त्वार्थमूत्रव्याख्यानगन्धहस्तिप्रवर्तकः । स्वामी समन्तभद्रोभूदेवागमनिदर्शकः ॥ अवटुतटमटिति झविति स्फुटपटुवाचारधूर्जटेजिह्वा । वादिनि समन्तभद्रे स्थितवति का कथान्येपाम् ।। शिष्यौ तदीयौ शिवकोटिनामा शिवायन शास्त्रविदां वरिष्टा । कृत्स्नश्रुतश्रीगुणपादमूले ह्यधीतिमन्ती भवतः कृतायौं । तदन्ववाये विदुपां वरिष्ठः स्याद्वादनिष्ठः सकलागमज्ञः । श्रीवीरसेनोऽजनि तार्किकत्री प्रध्वस्तरागादिसमस्तदोपः ॥ १. बहुत लोगोंका ख्याल है बल्कि कई एक कयानन्यों में भी लिखा है कि, शिवकोटिका ही दूसरा नाम शिवायन था। परन्तु कवियर हस्तिन, कपनमे शिवकोटि और शिवायन दो जुदे : आचार्य सिद्ध होते हैं।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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