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________________ (१४७) सेव्यः सिंहसमय॑पीठविभवः सर्वप्रवादिप्रजादेत्तौञ्चर्जयकारसारमहिमा श्रीवादिराजो विदाम् ॥२॥ यदीय गुणगोचरोऽयं वचनविलासप्रसरः कवीनाम्:श्रीमचौलुक्यचक्रेश्वरजयकटके वाग्वधूजन्मभूमौ निष्काण्डं डिण्डिमा पर्यटति पटुरटो वादिराजस्य जिष्णोः। जायद्वाददो जहिहि गमकता गर्वभूमा जहारि व्याहारेयो जहारि स्फुटमृदुमधुरश्रव्यकाव्यावलेपः ॥३॥ पाताले व्यालराजो वसति सुविदितं यस्य जिह्वासहस्रं निर्गन्ता स्वर्गतोऽसौ न भवति धिषणोवाभ्रद्यस्य शिष्यः । जीवेतां तावदेतो निलयवलवशावादिनः केवनान्ये गर्व निर्मुच्य सर्व जयिनमिनसभे वादिराजं नमन्ति ॥४॥ वाग्देवीसुचिरप्रयोगसुदृढमेमाणमप्यादरादादत्ते मम पावतोऽयमधुना श्रीवादिराजो मुनिः। भोः भोः पश्यत पश्यतैष यमिनां किं धर्म इत्युच्चकैरब्रह्मण्यपराः पुरातनमुनेवाग्वृत्तयः पान्तु वः ॥५॥ भावार्थ-त्रैलोक्यदीपिका (त्रैलोक्यको प्रकाशित करनेवाली) वाणी या तो जिनराजके मुखसे निर्गत हुई या वादिराजसूरिसे। वादिराजकी महत्त्वसामग्री राजाओंके समान थी। चन्द्रमाके समान उज्ज्वल यशका छत्र था, वाणीरूपी चवर उनके कानोंके समीपदरते थे, सब उनकी सेवा करते थे, उनका सिंहासन जयसिंहनरेशसे वा पुरुषसिंहोंसे अर्चित था और सारी प्रवादी प्रजा उच्चस्वरसे. उनका जयजयकार करती थी । उनके गुणोंकी प्रशंसा कवियों
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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