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________________ (१३८) है। हा, उसमें जो सन्यासमरण न करनेत्री तथा गोपुच्छ ग्रहण करनेकी बात है वह अवश्य दर्शनमारके कयनो मिती है, और उसका वह अंश है नी सर्वानुमत ! मायुरसंघकी उत्पत्ति। यद्यपि मायुरसंव काष्टावका एक मेड़ है, तयारि उसमें कुछ विशेषता भी है और शायद इसी कारण वह मायुगच्छ न कहलः कर माथुरसंत्र कहा जाता है। एक प्रकारसे यह एक स्वतंत्र संत्र हैं। निसान इसनी उत्सति विषय निनलिखित गाया मिलती है तची दुसएतीद महुराए माहुराण गुरुणाहो । ' णामेण रामसेणी णिप्पिच्छियं वणियं वेण ॥४१ ।। मान् काष्ठासंवकी उत्पत्तिके वे सौ वर्ष पछि नथुरा नगरी माथुरसंवका प्रवर्तक रामसेन नामका प्रधान मुनि हुमा । उसने बिना पिच्छीक मुनिशा स्वल्प वर्णन किया । अर्थात् उसके मनके अनुसार मुनि विना पिच्छिक मी रह सकता है। । इससे यह मी मान्म होता है कि पांत्र जैनामामाने जो एक निःपिच्छिक जैनामान बनाया है, वह और मायुसंव एक ही है। मायुरसंवना ही दूसरा नान नि:पिच्छिक है।। मतविरोध। लियोंकी दीक्षा शुल्क लोगोंको वीरचर्या, प्रायश्चित्त आदि विषयामें कष्टावका जो मतमेन है, उससे हम मन्त्री मांति परिचित नहीं
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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