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________________ ( ५ ) I हुए आना बतलाया है । इस ग्रन्थ में जिनसेनके गुरुका नाम यशो| मद्र बतलाया है, जो कि एक अंगके धारक थे । इससे भी ज्ञानवोधका कथन असत्य ठहरता है । " जिनसेन और गुणभद्रस्वामीके गृहस्थावस्थाके वंशका भले ही कुछ पता नहीं लगे, परन्तु उनके मुनिवंशका परिचय उनके ग्रन्थोंसे तथा || दूसरे उल्लेखोंसे भलीभाँति मिलता है । महावीर भगवान् के निर्वाणके पश्चात् जब तक श्वेताम्बरसम्प्रदायकी उत्पत्ति नहीं हुई थी, तब तक यह जैनधर्म संघभेदसे रहित था । केवल आर्हत, जैन, अनेकान्त आदि नामोंसे इसकी प्रसिद्धि थी । परन्तु जव विक्रमकी मृत्युके १३६ वर्ष पीछे श्वेताम्बरसम्प्रदाय पृथक् हुआ, तब दिगम्बरसम्प्रदाय मूलसंघके नामसे प्रसिद्ध हुआ । आगे मूलसंघमें भी अलि आचार्यके समय में जोकि वीरभगवानके निर्वाणसे लगभग ७०० वर्ष पीछे हुए हैं, चार भेद हुए । १. नन्दिसंघकी पट्टावलीमें यशोभद्रको चीरनिर्वाणके ४७४ वर्ष पीछे अर्थात् "विक्रम संवत्के प्रारंभमें वतलाया है । पट्टावलीमें जिनसेनका नाम नहीं है ! फ़ारन्तु यदि खंडेलवालोंकी उत्पत्तिका वृत्तान्त ज्ञानप्रबोध सरीखा कपोलकल्पित नहीं है, तो ऐसा माना जा सकता है कि, ये यशोभद्रके ऐसे अनेक शिष्योंमिस जो कि अंगधारी नहीं थे, एक होंगे और महापुराणके कत्तांसे सिवाय नामसाम्यके नका और कोई सम्बन्ध नहीं होगा। खंडेलवालोंकी उत्पत्तिके विषयमें जबतक केसी प्राचीन प्रामाणिक ग्रंथमें कुछ उल्लेख नहीं मिले, तबतक उसे असत्य समझना चाहिये । २ एकसए छत्तीसे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स । सोरडे वलहीए उप्पण्णी सेवडो संघो ।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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