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________________ (१३४) सत्तसए तेवण्णे विक्कमरायस्स मरणपत्तसस । नंदियडे वरगामे कट्ठोसंघो मुणेयन्वो ॥ ३९ ॥ नदियडे वरगामे कुमारसेणो य सत्यविणाणी । कट्ठो दसणभट्टो जादो सल्लेहणाकाले ॥ ४० ॥ .. अर्थात्-श्रीवीरसेनके शिप्य भगवजिनसेन जो कि सम्पूर्ण तत्त्वोंके ज्ञाता थे, श्रीपद्मनंदिके पश्चात् चारों संबके स्वामी आचार्य हुए । फिर इनके गुणभद्र नामके शिष्य हुए, जो दिव्यज्ञानपरिपूर्ण पक्षोपवास करनेवाले थे । इन्होंने श्रीविनयसेन मुनिकी मृत्यु होनेपर सिद्धांत शास्त्रोंका उपदेश किया और पीछे वे भी स्वर्ग लोगको सिधारे अर्थात् श्रीविनयसेनके पश्चात् गुणभद्र आचार्य हुए। विनयसेनका एक कुमारसेन नामका शिप्य हुआ। उसने एक वार सन्यास भंग करके फिर दीक्षा नहीं ली और मयूरपिच्छी छोड़कर गोपुच्छकी पिच्छी ग्रहण कर ली । तथा सम्पूर्ण वागड़ देशमें उन्मार्गकी प्रवृत्ति की। उसने स्त्रियोंको मुनिदीक्षा देनेकी, क्षुल्लक लोगोंको वीरचर्या करनेकी, अर्थात् मुनियोंके समान आतापनयोगादि धारण करनेकी और कठोरकेशोंकी पिच्छी (गोपुच्छ ) १.श्रीवीरसेनके पश्चात् पटके आचार्य श्रीपद्मनन्दि हुए होंगे और उनक पश्चात् वीरसेनके शिष्य जिनसेन हुए होंगे। २. विनयसेनमुनि जिनसेनके सतीर्थ ( एक गुरुके शिष्य ) थे, ऐसा पावीभ्युदय काव्यकी प्रशस्तिसे जान पड़ता है । यथा,' 'श्रीवीरसेनमुनिपादपयोजभूगः श्रीमानभूद्विनयसनमुनिर्गरीयान् । तचोदितेन जिनसेनमुनीश्वरण काव्यं व्यधायि परवेष्टितमेघदूतम् ॥
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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