SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२५) अनीश्वरी केवलमर्चनीयं (यावच्चिरं ) तिष्ठति मुक्तिशुक्ता तावद्धरायामिदमत्र शास्त्रं स्तुयाच्छुभं कर्मनिराशकारि ॥५॥ ___ इत्यमितगतिकृतः पञ्चसंग्रहः समाप्तः । इसका सारांश यह है कि जिस समय महाराजा सिन्धुपति ( मोजके पिता ) पृथ्वीका पालन करते थे, उस समय कीर्तिशाली माथुरसंघमें एक माधवसेन नामके आचार्य हुए जिनके गौतमगणघरके समान विद्वान् शिष्य अमितगतिने यह पंचसंग्रह अन्य सम्पूर्ण कर्मसमितियोंकी प्रख्यापनाके लिये बनाया। इसमें यदि कोई वात शास्त्रविरुद्ध हो, तो उसका निराकरण करके सार ग्रहण करना चाहिये, जैसे छिलके निकाल करके लोग उपकारी फलको । काममें लाते हैं। इस प्रशस्तिमें अन्यके वनानेका समय नहीं लिखा है, परन्तु दानवीरशेठ माणिकचन्दनीके यहां जो प्रशस्तिसंग्रह पुस्तक है, उसमें इसके वननेका समय संवत् १०७३ लिखा हुआ है, जिससे मालूम होता है कि प्रशस्तिका एकाध श्लोक जिसमें संवत्का उल्लेख होगा, छूट गया है । यदि यह संवत् ठीक है और ठीक ही होना संभव है तो कहना चाहिये कि पंचसंग्रहकी रचना धर्मपरीक्षासे ३ वर्ष पीछे हुई है। इस प्रशस्तिसे यह भी मालूम होता है कि, ग्रन्थकर्ताके गुरुवर्य श्रीमाधवसेनहरि महाराजाधिराज मोजके पिता तथा मुंजके १. इस श्लोकके पूर्वार्द्धका भाव समझमें नहीं आया।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy