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________________ भावार्थ-मैंने (आशाधरने ) सागारधर्मामृतकी यह सुन्दर टीका वनाई जिसके आठ अध्याय हैं । जव परमारवंशशिरोमाण देवसेन राजाके पुत्र श्रीमान् जैतुगिदेव अपने खड्गके वलसे मालवाका शासन करते थे, तब नलकच्छपुरके नेमिनाथ चैत्यालयमें यह भन्यकुमुदचन्द्रिका टीका पौषवदी ७ सं० १२९६ को पूर्ण हुई। यह श्रावक धर्मदीपक ग्रन्थ पंडित आशाधरने बनाया और पोरवाड़वंशरूपी आकाशके चन्द्रमा श्रीमान् समुद्धरश्रेष्ठीके पुत्रने महीचन्द्रकी प्रार्थनासे . इसकी पहिली पुस्तक लिखी । उस श्रेष्ठीपुत्रके पुण्यकी बढ़वारी हो । अन्तरंगके अंधकारको नष्ट करनेवाला जिनेन्द्रदेवका शासन जब तक रहे और जबतक चन्द्रसूर्य लोगोंके नेत्रोंको आनन्दित करते रहें, तब तक यह श्रावकधर्मका ज्ञान करानेवारी टीका भव्य जनोंके आगे धर्माचार्योके द्वारा निरन्तर पढ़ी जावे । सोऽहमाशाधरोऽकार्ष टीकामेतां मुनिप्रियाम् । स्वोपज्ञधर्मामृतोक्तयतिधर्मप्रकाशिनीम् ॥ २०॥ शब्दे चार्थे च यत्किञ्चिदत्रास्ति स्खलितं मम । छमस्थभावात्संशोध्य सूरयस्तत्पठन्त्विमाम् ॥ नलकच्छपुरे पौरपौरस्त्यः परमार्हतः ।। जिनयज्ञगुणौचित्यकृपादानपरायणः ॥२२॥ खंडिल्यान्वयकल्याणमाणिक्यं विनयादिमान् । साधुः पापाभिधः श्रीमानसीत्पापपराङ्मुखः ॥ २३ ॥ तत्पुत्रो बहुदेवोऽ भूदायः पितृभरक्षमः । द्वितीयः पद्मसिंहश्च पदालिंगितविग्रहः ॥ २४ ॥
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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