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________________ (१०८) महाराज अर्जुनदेवके वि० सर्वत् १२७२ के दानपत्रके अन्तमें लिखा हुआ है:-" रचितमिदं महासान्धि० राजा सलखणसंमतेन राजगुरुणा मदनेन " इससे ऐसा मालूम होता है कि पं० आशाधरके पिता सलखण ( सलक्षण ) महाराजा अर्जुनदेवके सन्धिविग्रह सम्बन्धी मंत्री थे । यद्यपि आशाधरके पिता महाजन थे और दानपत्रमें सम्मति देनेवाले सलखणके साथ 'राजा' पद लगा हुआ है, इससे अन्य किसी सलखण नामक राजाकी भी संभावना भी हो सकती है, परन्तु आशाधरके पिताका संधिविग्रहको मंत्रियोंका राजा होना कुछ आश्चर्यकी बात भी नहीं है। क्योंकि उस समय प्रायः महाजन लोग ही राज्यमंत्री होते थे। अब हम यहांपर तीनों ग्रंथोंकी प्रशस्तियोंके वाकी श्लोक जो ऊपर कहीं नहीं लिखे गये हैं, भावार्थसहित उद्धृत करते हैं:पाच्यानि संवर्ण्य जिनप्रतिष्ठाशास्त्राणि दृष्ट्वा व्यवहारमैन्द्रम् । आम्नायविच्छेदतमश्छिदोऽयं ग्रन्थाकृतस्तेन युगानुरूपम् १४ खण्डिल्यान्वयभूषणाल्हणसुतः सागारधर्मे रतो वास्तव्यो नलकच्छचारुनगरे कर्ता परोपक्रियाम् ।। सर्वज्ञार्चनपात्रदानसंमयोद्योतप्रतिष्ठाग्रणी .. पापासाधुरकारयत्पुनरिमं कृत्वोपरोधं मुहुः ॥ १५॥ विक्रमवर्षसपश्चाशीतिद्वादशशतेष्वतीतेषु । .. .आश्विनसितान्त्यदिवसे साहसमल्लापराख्यस्य-॥ १६॥ . .: श्रीदेवपालनृपतेः प्रमारकुलशेखरस्य सौराज्ये । :: नलकुच्छपुरे सिद्धो ग्रन्थोऽयं नेमिनाथचैत्यगृहे ॥ १७॥'
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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