SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 112
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१००) इन सब विषयों में उन्होंने सैकड़ों शिष्योंको निष्णात कर दिया था। देखिये, वे क्या कहते हैं:- यो द्राग्व्याकरणाब्धिपारमनयच्छुश्शूपमाणान्नकान् षट्तीपरमास्त्रमाप्य न यतः प्रत्यर्थिनः केऽक्षिपन् । · चेरुः केऽस्खलितं न ये न जिनवाग्दीपं पथि ग्राहिताः पीत्वा काव्यसुधां यतश्च रसिकेप्वापुः प्रतिष्ठां न के ॥९॥ • भावार्थ-शुश्रूषा करनेवाले शिष्योंमेंसे ऐसे कौन हैं, जिन्हें आशाधरने व्याकरणरूपी समुद्रके पार शीघ्र ही न पहुंचा दिया हो तथा ऐसे कौन हैं, जिन्होंने आशाधरसे षट्दर्शनरूपी परम शस्त्रको लेकर अपने प्रतिवादियोंको न जीता हो तथा ऐसे कौन हैं, जो आशाधरसे निर्मल जिनवचनरूपी (धर्मशास्त्र ) दीपक ग्रहण करके मोक्षमार्गमें प्रवृत्त नहीं हुए हों, अर्थात् मुनि न हुए हों और ऐसे कौन शिष्य हैं, जिन्होंने आशाधरसे काव्यामृतका पान करके रसिक पुरुषोंमें प्रतिष्ठा नहीं पाई हो । इस श्लोककी टीकामें पंडितवर्यने प्रत्येक विषयके पार पहुंचे हुए अपने एक २ दो २ शिष्योंका नाम भी दे दिया है। पंडित देवचंद्रादिको उन्होंने व्याकरणज्ञ बनाया था, वादीन्द्र विशालकीर्ति आदिको षड्दर्शनन्यायका ज्ञाता बनाकर वादियोंपर विजय प्राप्त कराई थी, भट्टारक 'देवचन्द्र विनयचन्द्र आदिको धर्मशास्त्र पढ़ाकर मोक्षमार्गमें प्रवृत्त किया था और मदनोपाध्यायादिको काव्यके पंडित बनाकर अर्जुनवर्मदेव जैसे रसिक राजाओंकी प्रतिष्ठाका अधिकारी (राजगुरु ) बना दिया था। पाठक इससे जान सकते हैं कि आशाधरकी विद्वत्ता, 4
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy