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________________ आजकल सांभर कहते हैं, सवालख देशकी श्रृंगाररूप थी । मंडलकरदुर्गको आजकल 'मांडलगढ़का किला' कहते हैं । यह इस समय मेवाड़ राज्यमें है । उस समय मेवाड़का सारा पूर्वीय भाग चौहानोंके आधीन था। चौहान राजाओंके वहुतसे शिलालेख वहां अव तक मिलते हैं । महाराजाधिराज पृथ्वीराजके समय तक मांडलगढ़ सपादलक्ष देशके अन्तर्गत था और वहांके अधिकारी चौहान राजा थे। पीछे अजमेरपर मुसलमानोंका अधिकार होनेपर वह किला भी उनके हस्तगत होगया था । __ आशाधरकी स्त्री सरस्वतीसे एक छाहड़ नामका पुत्र था, जिसने धाराके तत्कालीन महाराजाधिराज अर्जुनदेवको अपने गुणोंसे मोहित कर रखा था। वह अपने पिताका सुपूत पुत्र था । यद्यपि उसके कीर्तिशाली कार्योंके जाननेका कोई साधन नहीं है । परन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि, वह होगा अपने पिता ही जैसा विद्वान् । इसीलिये पंडितराजने एक श्लोकमें अपने साथ उसकी तुलना की है कि "जिस तरह सरस्वतीके (शारदाके) विषयमें मैंने अपने आपको उत्पन्न किया, उसी तरहसे अपनी सरस्वती नामकी भार्याक गर्भसे अपने अतिशय गुणवान् पुत्र छाहड़को उत्पन्न किर्या !" छाहड़ सरीखे गुणवान् पुत्रको पानेका एक प्रकारसे उन्हें अभिमान था । जान पड़ता है, उनके छाहड़के अतिरिक्त और कोई पुत्र नहीं था । यदि होता, तो वे अपने ग्रन्योंकी प्रशस्तिमें छाहड़के समान - १-सरस्वत्यामिवात्मानं सरस्वत्यामजीजनत। यः पुत्रं छाहडं गुण्यं रंजितार्जुनभूपतिम् ॥ २ ॥
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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