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________________ (८९) ७. जटाचार्य-काव्यका अनुचिन्तन करते समय जिनकी जटाएं चंचल होकर ऐसी मालूम होती थीं, मानों अर्थका व्याख्यान कर रही हैं। जटाचार्यका दूसरा नाम सिंहनन्दि भी है। ऐसा आदिपुराणकी टिप्पणीमें लिखा है। ८. काणभिक्षु-कथालंकारके वनानेवाले । ९. देव-कवियोंके तीर्थंकर । बहुत करके यह आचार्य देवनन्दिका संक्षिप्त नाम होगा। १०. भट्टाकलंक-११ श्रीपाद,-१२ पात्रकेसरी--इनके अतिशय निर्मलगुण विद्वानोंके हृदयमें हारके भावको प्राप्त होते हैं। ' १३. वादिसिंह-कवित्व, वाग्मित्व, और गमकत्वकी सीमापर पहुंचे हुए। आश्चर्य नहीं कि, 'वादिसिंह यह वादीभासिंहका ही नामान्तर हो । जिस तरह वादीभसिंहके कवित्वको प्रगट करनेवाले गद्यचिन्तामणि और क्षत्रचूडामणि दो ग्रन्थ प्रगट हो चुके हैं, उसी 'प्रकारसे अपने नामानुसार तार्किकत्वको प्रगट करनेवाली उन्होंने आप्तमीमांसाकी भी कोई टीका लिखी है जिसका उल्लेख अष्टसहस्त्रीकी उत्थानिकामें (श्रीमता वादीमसिंहनोपलालितामाप्तमीमांसां) मिलता है। - १४. वीरसेन-जिनसेनस्वामीके गुरु प्रसिद्धकवि और सिद्धान्तअन्योंके टीकाकार । १५. जयसेन-तपस्वी, शान्तमार्ति, शास्त्रज्ञ, पंडिताग्रणी । १६. कविपरमेश्वर-कवियोंद्वारा पूज्य और वागर्थसंग्रह पुरा'णका रचनेवाले।
SR No.010770
Book TitleVidwat Ratnamala Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Mitra Karyalay
Publication Year1912
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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