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________________ प्रवचनसार [ ८९ ताहि उतपादादि औ गुन परजायहीतें, ___ लखिये है यानै यह लच्छन कहावै है ॥ किरतार साधन अधार दर्व इनको है, __इन विना द्रव्यहू न सिद्धिता लहावे है । "लच्छ और लच्छनमें जद्यपि विविच्छाभेद, तथापि स्वरूपते अभेद ठहरा है ॥ १८ ॥ (४) गाथा-९६ दो प्रकार अस्तित्व-स्वरूपास्तित्व, __ सादृश्यास्तित्व, स्वरूपास्तित्वका कथन । दर्वका सरखकालमाहिं असतित्व सोई, निहचैसों मूलभूत सहज सुभाव है । सोई निज गुण औ स्वकीय नाना पर्जकरि, औ उतपाद-व्यय-ध्रौवता लहाव है ॥ करतार साधन अधार दर्व इनको है, इन विना यह न सिद्धिताकों पाव है। द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावकरि सदा एक ही है, __ साधिवेके हेत लच्छ-लच्छन जनाव है ॥१९॥ जैसे द्रव्य-छेत्र-काल-भावकरि कंचनतें, __पीततादि गुन पर्ज कुण्डल न जुदै हैं । करतार साधन अधार याको 'हेम ही है, ___ जाते हेमसत्ता विना इनको न उदै है ॥ कुण्डलको नाश उतपाद होत कंकनको, • हेमद्रव्य ध्रौव्य गुन पीतादि समुदै है । १. कर्ता। २. करण। ३. अधिकरण। ४. जिसका लक्षण किया जावे । ५. पर्याय । ६. सुवर्ण-मोना । -
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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