SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रवचनसार [२३ Mama (१६) अन्य कारकोंसे निरपेक्ष-स्वयंभू आत्मा मनहरण । ताही भांति विमल भये जे आप चिदानन्द । तासको स्वयंभू नाम ऐसो दरसायो है ॥ प्रापत भये अनन्त ज्ञानादि स्वभावगुन । आपहीते आपमाहिं सुधा बरसायों है । सोई सरवज्ञ तिहूँकालके समस्त वस्त । हस्तरेखसे प्रशस्त लखै सरसायो है ॥ ताहीके पदारविंद देवइन्द नागइन्द । मानुषेद वृन्द बंदि पूज हरषायो है ॥ ५२ ॥ पटकारक निरूपण . . दोहा। निजस्वरूप प्रापतिविपैं, पर सहाय नहिं कोय । षट्मक र कारकनिमें, यह आतम थिर होय ॥ ५३ ॥ तासु नाम लक्षण सुगम, कहों जथारथरूप । जैननकी रीतिसों, ज्यों गुरु कथित अनूप ॥ ५४ ॥ करता करम करन तथा, संप्रदान उर आन । अपादान पुनि अधिकरन, ये षटकारक मान ॥ ५५ ॥ गीतिका । । स्वाधीन होइ कहै सोई, करतार ताको जानिये । करतारंकी करतृतिको, कहि करम कारक मानिये ।।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy