SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -: प्रस्तावना : [प्रथमावृत्तिसे] पाठक महाशय ! लीजिये, श्री जिनेन्द्रदेवकी कृपासे हम आज वाराणसी निवासी कविवर वावू वृन्दावनदासजीका 'प्रवचनसार परमागम' लेकर उपस्थित हैं। इसका एकवार आद्योपान्त स्वाध्याय करके यदि आप अपनी आत्माका कुछ उपकार कर सकें, तो हम अपने परिश्रमको सफल समझेंगे। इस ग्रन्थके मूल कर्ता श्री कुन्दकुन्दाचार्य विक्रम संवत् ४९ में नंदिसंघके पट्टपर विद्यमान थे, ऐसा पट्टावलियोंसे पता लगता है। आपके बनाये हुए ८४ प्रामृत (पाहुइ) ग्रन्थ कहे जाते हैं, जिनमेंसे इस समय आठ-पाहुड उपलब्ध हैं। और पंचास्तिकाय, नाटक समयसार तथा प्रवचनसार ये तीन बहुत प्रसिद्ध हैं। इन तीनोंकी द्वितीय सिद्धान्तमें अथवा द्वितीय श्रुतस्कंधमें गणना है। और इनमें शुद्ध निश्चयनयको प्रधान मानकर कथन किया है। इस प्राभृतत्रयीमेंसे पंचास्तिकाय और नाटक समयसार छप चुके हैं। केवल प्रवचनसार रह गया था, सो आज यह भी मुद्रित होकर तैयार है। यद्यपि भाषा-वचनिका तथा मूल पाठके बिना इस ग्रन्थका सर्वांगपूर्ण उद्धार नहीं कहलायेगा तो भी यह नहीं कहा जा सकेगा कि प्रवचनसार प्रकाशित नहीं हुआ है। इस ग्रंथकी संस्कृतमें दो टीका उपलब्ध हैं, एक श्री अमृतचंदसूरिकी, तत्त्वदीपिका टीका और दूसरी श्री जयसेनाचार्यकी १. इन दोनों ही टीका के छपनेका प्रबंध हो रहा है। २. श्री कुन्दकुन्दाचार्यके तीनों ग्रन्थ पर श्री अमृतचंद्राचार्यकी टीकायें हैं और वे ____सव प्राप्य हैं । अमृतचन्द्राचार्य संवत् ९६२ में नन्दिसंघके पट्ट पर विद्यमान थे। ३. यह टीका बम्बई यूनीवर्सिटीने अपने एम. ए. के संस्कृत कोर्समें भरती की है।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy