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________________ पोठिका कवित्त । या प्रकार गुरुपरम्पराते, मह दुतीय सिद्धान्त प्रमान । शुद्ध सुनयके उपदेशक इत, शास्त्र विराजत हैं परधान ।। समयसार पंचास्तिकाय श्री, प्रवचनसार आदि सुमहान । कुन्दकुन्दगुरु मूल बखाने, टीका अमृतचन्द्रकृत जान ॥५६॥ कवि प्रार्थना। . तामें प्रवचनसारकी, बांचि वचनिका मंजु । छन्दरूप रचना रचों, उर धरि गुरुपदकंजु ॥ ५७ ॥ कहँ परमागम अगम यह, कहँ मम मति भतिहीन । शशि सपरशके हेतु जिमि, शिशु कर ऊंचौ कीन ॥ ५८ ॥ तिमि मम निरख सुधीरता, हंसि कहिहैं परवीन । काक चहत पिक-मधुर-धुनि, मूक चहत कवि कीन ॥ ५९ ॥ चौपाई। यह परमागम अगम बताई । मो मति अल्प रचत कविताई । सो लख हसि कहिहैं मति धीरा । शिरिष सुमन करि वेधत हीरा ॥६०॥ cacanaakasmirtan-arm.maran दोहा । वाल मराल चहै जथा, मन्दिर मेरु उठाव । . बालबुद्धि भवि वृन्द तिमि, करन चहत कविताव ॥६१॥ . पूरख सुकवि सहायतें, जिनशासनकी छोहिं । हूं यह साहस कीन है, सुमरि सुगुरु मानांहि ॥ ६२ ॥ हैं
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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