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________________ ११० ] कविवर वृन्दावन विरचित जीवकी अशुद्ध परनतिरूप क्रिया होत, ___ताको फल देह धारि चारों गति लहैगो ॥ याको नाम संसार बखाने सारथक जिन, ___ जाकी भवथिति घटी सोई 'सरदहैगो ॥ ९४ ॥ (२९) गाथा-१२१ किस कारणसे संसारीको पुद्गलका संबंध होता है ? अनादित पुग्गलीक कर्मसों मलीन जीव, रागादि विकार भाव कर्मको लहत है । ताही परिनामनित पुग्गलीक दर्व कर्म, ___ आयके प्रदेशनिसों बंधन गहत है ॥ तातें राग आदिक विकारभाव भावकर्म, ___नयो दर्वकरमको कारन कहत है। ऐसो बंधभेद भेदज्ञानतै विवेद वृन्द, साधी है सिद्धांतमाहिं सुगुरु महत है ॥९५॥ प्रश्न-दोहा। दरख करमतें भावमल, भाव करमतें दव्व । यामैं पहिले कौन है, मोहि बतावो अव्व ।। ९६ ॥ इतरेतर आश्रय यहां, आवत दोष प्रसंग । ताको उत्तर दीजिये, ज्यों होवै भ्रम भंग ॥९७ ॥ उत्तर । उत्तर सुनो! अनादित, दरव करम करि जीय । है प्रबंध ताको सुगुरु, कारन पुन्च गहीय ॥९८॥ ई १. श्रद्धान करेगा।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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