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________________ १०२ ] कविवर वृन्दावन विरचित दोहा । दरव और गुनके विय, है अन्यचविभेद ! जुदे दोउ नहिं सावया, श्रीगुरु करी निघद ॥ ६३ !! मनहरण । गुन-गुनीमाहिं सावथा ही अभावरूप, भेद माने दोनहीको नाम सम्वधा है । जाते जेते गुन ते जुदे-जुड़े इवे होई, सो बान संघ नाहिं कहिवौ विकया है । गुन के अमाव भ गुनको अभाव होत, सोनेनाहिं साधि दी साधी साध जया है । ताते व्यवहार कथंचित विभेद मानो, वस्तुसिद्धिन श्रुतिमाहि जया मथा है । ६४ ॥ (१७) गाथा-१०९ सचा और द्रव्यका गुण-गुणीन्य सिद्ध करते हैं। द्रव्यको मुमत्र परिनाम जु है निश्चै चरि, अन्तिन स्वरूप सोई सत्ता नाम गुन है । सर्व गुनमें प्रवान फहरे निशान जाको, उत्पादवयवुवसंजुत सुगुन है । ताही असतिरूप सत्त में विराजे दुर्व, यातें सत नाम द्रव्य पावत अयुन है । ऐसे सज गुन औ दस गुनी एकाई, साधी कुन्दकुन्द वृन्द वन्दत निपुन है ।। ६५ ।।
SR No.010769
Book TitlePravachansar Parmagam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherDulichand Jain Granthmala
Publication Year1974
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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