SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 101 जीव- समूह की दया को समझकर ज्ञानी पूर्व, पश्चिम, उत्तर, और दक्षिण दिशा में ( सब स्थानों पर ) ( उसका ) उपदेश दे, ( उसको) वितरित करे (तथा) (उसकी प्रशंसा करे । 102 (धर्म) गांव में (होता है) अथवा जंगल में ? ( वह) न ही गांव में होता है), न ही जंगल में । (धर्म तो अहिंसा और समता के पालन में है ) आत्मजागृति है और प्रज्ञावान् अहिंसक ( महावीर ) के द्वारा ( इस ) प्रतिपादित धर्म को (तुम) समभो । 103 जैसा कि सुना है ( मैं ) कहूँगा । ( श्रात्म-स्वरूप) को जानकर श्रमरण भगवान् उस हेमन्त (ऋतु) में (सांसारिक परतन्त्रता को) त्यागकर दीक्षित हुए (और) वे इस समय ( ही ) विहार कर गए । 104 अव ( महावीर ) तिरछी भीत पर प्रहर (तीन घण्टे की अवधि ) तक (पलक न झपकाई हुई) प्रांखों को लगाकर आन्तरिक रूप से ध्यान करते थे । तव ( उन असाधारण ) प्रांखों के डर से युक्त वे (वे- समझ लोग) यहाँ आश्रो ! देखो ! ( कहकर ) बहुत लोगों को पुकारते थे । 105 (यदि) कभी ये ( महावीर ) घर में रहने वाले से (युक्त) (स्थान) ( पर ठहरते थे), (तो) वे ( वहां उनसे) मेल-जोल के विचार को छोड़कर ध्यान करते थे । (यदि ) ( उनसे कभी कोई बात पूछी गई (होती थी) (तो) भी (वे) वोलते नहीं थे, (कोई बाधा उपस्थित होने पर ) ( वे) ( वहां से ) चले जाते थे, (वे) (सदैव ) संयम में तत्पर होते थे) (और) (वे ) ( कभी ) ( ध्यान की) उपेक्षा नहीं करते थे । चयनिका ] [ 65
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy