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________________ जाने वाले नहीं (हैं)-पार जाने के लिए बिल्कुल (समर्थ) नहीं (होते हैं) । ग्रहण किए जाने के योग्य को ग्रहण करके (धूर्त व्यक्ति) उस स्थान पर नहीं ठहरता है। असत्य को प्राप्त करके धूर्त (व्यक्ति) उस स्थान पर ठहरता है। 38. द्रष्टा (समतादर्शी) के लिए (कोई) उपदेश (शेष) नहीं है। और अज्ञानी (विषमतादर्शी) आसक्ति-युक्त (होता है), भोगों का अनुमोदन करने वाला (होता है), अपरिमित दु:ख के कारण दुःखी (होता है), (तथा) दुःखों के ही भंवर में फिरता रहता है । इस प्रकार (मैं) कहता हूँ। 39. हे धीर ! (तू) (मनुष्यों के प्रति) आशा को और (वस्तुओं की) इच्छा को छोड़। तू ही उस (आशा और इच्छारूपी) विष को ग्रहण करके (दुःखी होता है)। जिस (वस्तु) के कारण (सुख-दुःख) होता है, उस (वस्तु) के कारण (सुख-दुःख) नहीं (भी) होता है। (ऐसा सोचनेसमझने से मनुष्य पर से स्व की ओर लौट आता है)। जो मनुष्य आसक्ति से ढके हुए हैं), (वे) इस (वात) को ही नहीं समझते (हैं)। 40. महावीर ने कहाः (यदि कहीं) घोर आसक्ति में (डूबने का) (आकर्षण) (उपिस्थित) (हो जाए), (तो) (उस) (समय) (जो) (व्यक्ति) प्रमाद (आसक्ति)-रहित (रहता है), (वह) (प्रशंसनीय) (होता है); कुशल (व्यक्ति) के लिए (ऐसा) (होना) पर्याप्त (है) (कि) (वह) (संसार में) प्रमाद (आसक्ति) (के विना) (रहता है); शान्ति और मरण को देखकर (तथा) (शरीर के) नश्वर स्वभाव को देखकर (कोई भी व्यक्ति आसक्ति में न डूबे) । तू देख, (कि) चयनिका ] [ 31
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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