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________________ 28. (जन) उसको पहले बुरा-भला कहते हैं, पीछे वह भी उन आत्मीय-(जनों) को बुरा-भला कहता है। (अतः तुम समझो कि) वे तुम्हारे सहारे के लिए या सहायता के लिए पर्याप्त नहीं (हैं)। (ध्यान रखो) तुम भी उनके सहारे के लिए या सहायता के लिए पर्याप्त नहीं (हो)। (बुढ़ापे की अवस्था में) वह (मनुष्य) मनोरंजन के लिए, क्रीड़ा के लिए, प्रेम के लिए तथा (प्रचलित)सजवाट के लिए(उपयुक्त)नहीं(रहता है।) इस प्रकार (मनुष्य) (बुढ़ापे को समझकर) आश्चर्यकारी संयम के लिए सम्यक्-प्रयत्नशील (वने) । (अतः) (सचमुच ही) इस अवसर (वर्तमान मनुष्य-जीवन के संयोग) को देखकर ही धीर (मनुष्य) क्षणभर के लिए भी प्रमाद न करे। (समझो) आयु वीतती है, यौवन भी (वीतता है)। (अतः मनुष्य प्रमाद न करे)। इस जीवन में जो (व्यक्ति) प्रमाद-युक्त (होते हैं), (वे आयु व्यतीत होने को समझ नहीं पाते हैं), (अतः) (वह) (प्रमादी व्यक्ति) (जीवों को) मारने वाला, छेदने वाला, भेदने वाला, (उनकी) हानि करने वाला, (उनका) अपहरण करने वाला, (उन पर) उपद्रव करने वाला (तथा) (उनको) हैरान करने वाला (होता है)। कभी नहीं किया गया (है) (एसा) (मैं) करूंगा, इस प्रकार विचारता हुआ (प्रमादी व्यक्ति हिंसा पर उतारू हो जाता है)। हे पण्डित ! इस प्रकार प्रत्येक (जीव) के सुख-दुःख को समझकर (और) (अपनी) आयु को ही सचमुच न वीती हुई देखकर, (तू) उपयुक्त अवसर को जान ।। जव तक श्रवणेन्द्रिय की ज्ञान-(शक्तियाँ) कम नहीं होती हैं), जव तक चक्षु-इन्द्रिय की ज्ञान-(शक्तियाँ) कम नहीं होती हैं), 29. 30. चयनिका ] [ 25
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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