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________________ (आसक्ति-युक्त) (है), (वह) (वास्तव में) (मूर्छा रूपी) घर में (ही) निवास करता है। 23. प्रत्येक (जीव) की शान्ति को विचार करके और देख करके (तुम हिंसा को छोड़ो), (चकि) सब प्राणियों के लिए, सब जन्तुओं के लिए, सब जीवों के लिए, सब चेतनवानों के लिए पीड़ा, अशान्ति (है), महा भयंकर (है), दु:ख-युक्त (है)। इस प्रकार (मैं) कहता हूं। (संसार में) प्राणी (सब) दिशाओं में तथा प्रत्येक स्थान पर भयभीत रहते हैं। (चू कि) तू देख, प्रत्येक स्थान पर मूच्छित (मनुष्य) अलगअलग (प्रकार से) (प्राणियों को) दुःख पहुंचाते हैं । (और) (ये) प्राणी भी अलग-अलग (प्रकार के) होते हैं। 24. जो अध्यात्म (समतामयी परम-आत्मा) को जानता है, वह वाहर की ओर (स्थित) (सांसारिक विषमताओं) को समझता हैं; जो बाहर की ओर (स्थित) (सांसारिक विषमताओं) को समझता है, वह अध्यात्म (समतामयी परम-धात्मा) को जानता है। (जीवन के सार का) खोज करने वाला (मनुष्य) इस (आध्यात्मिक) तराजू को (समझे)। 25. यहां (तुम) जानो कि यद्यपि (कई मनुष्य) (गुरु के) निकट (अहिंसा-समता को) समझते हुए (स्थित हैं), (फिर भी) (उनमें से) जो आचार (अहिंसा-समता) में ठहरते नहीं हैं, (आश्चर्य ! ) (वे) हिंसा करते हुए (भी) आचार (अहिंसासमता) का (दूसरों के लिए) कथन करते हैं। (इस तरह से) (उनके द्वारा) स्वच्छन्दता प्राप्त की गई है) (और) (वे) अत्यन्त दोष (आसक्ति) में डूबे हुए हैं । (इस प्रकार से) हिंसा चयनिका ] [ 21
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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