SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12. स्वयं ही वनस्पतिकायिक जीव- समूह की हिंसा करता है या दूसरों के द्वारा वनस्पतिकायिक जीव-समूह की हिंसा करवाता है या वनस्पतिकायिक जीव समूह की हिंसा करते हुए ( करने वाले) दूसरों का अनुमोदन करता है । वह ( हिंसा - कार्य ) उस (मनुष्य) के हित के लिए (होता है), वह (हिंसा कार्य) उसके लिए अध्यात्महीन बने रहने का ( कारण ) (होता है) । वह (मनुष्य और वनस्पतिकायिक जीव की तुलना ) मैं कहता हूँ - यह (मनुष्य) भी उत्पत्ति स्वभाव (वाला) (होता है), यह (वनस्पति) भी उत्पत्ति स्वभाव (वाली) (होती है) । यह (मनुष्य) भी बढ़ोतरी स्वभाव ( वाला) (होता है), यह (वनस्पति) भी बढ़ोतरी स्वभाव (वाली) (होती है) । यह (मनुष्य) भी चेतना वाला (होता है), यह (वनस्पति) भी चेतना वाली होती है । यह (मनुष्य) भी कटा हुआ उदास होता है, यह (वनस्पति) भी कटी हुई उदास होती है । यह (मनुष्य) भी प्रहार करने वाला (होता है), यह (वनस्पति) भी प्रहार करने वाली (होती है) । यह (मनुष्य) भी नाशवान् (होता है), यह (वनस्पति) भी नाशवान् (होती है ) । यह (मनुष्य) भी हमेशा न रहने वाला (होता है), यह (वनस्पति) भी हमेशा न रहने वाली (होती है) । यह (मनुष्य) भी बढ़ने (वाला) और क्षय वाला (होता है), [ 11 चयनिका ]
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy