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________________ थे (106) | हर्ष - शोक रहित देखने में नहीं बिताते कामातुर इशारों में वे वे प्राणियों की हिंसा से बचकर विहार वे खाने-पीने की मात्रा को समभने वाले थे और रसों में कभी लालायित नहीं होते थे ( 109 ) । महावीर कभी शरीर को नहीं खुजलाते थे और आँखों में कुछ गिरने पर आँखों को पोंछते भी नहीं थे (110) । वे कभी शून्य घरों में, कभी लुहार, कुम्हार आदि के कर्मस्थानों में, कभी बगीचे में, मसारण में और कभी पेड़ के नीचे ठहरते थे और संयम में सावधानी बरतते हुए वे ध्यान करते थे ( 112, 113, 114 ) | महावीर सोने में श्रानन्द नहीं लेते थे । नींद आती तो अपने को खड़ा करके जगा लेते थे । वे थोड़ा सोते अवश्य थे पर नींद की इच्छा रखकर नहीं ( 115 ) । यदि रात में उनको नींद सतात, तो वे प्रवास से बाहर निकलकर इधर-उधर घूम कर फिर जागते हुए ध्यान में बैठ जाते थे (116) | I काम-कथा होते थे करते थे तथा (107) | (108) महावीर ने लौकिक तथा अलौकिक कष्टों को समतापूर्वक सहन किया ( 117 118 ) । विभिन्न परिस्थितियों में हर्ष और शोक पर विजय प्राप्त करके वे समता-युक्त वने रहे ( 119 ) । लाढ देश के लोगों ने उनको वहुत हैरान किया । वहाँ कुछ लोग ऐसे थे जो महावीर के पीछे कुत्तों को छोड़ देते थे । कुछ लोग उन पर विभिन्न प्रकार से प्रहार करते थे (120, 121, 122 ) । किन्तु, जैसे कवच से ढका हुआ योद्धा संग्राम के मोर्चे पर रहता है, वैसे ही वे महावीर वहाँ दुर्व्यवहार को सहते हुए ग्रात्म-नियन्त्रित रहे (123) | दो मास से अधिक अथवा छः मास तक भी महावीर कुछ नहीं खाते-पीते थे । रात-दिन वे राग-द्व ेष- रहित रहे (124) । कभी वे दो दिन के उपवास के बाद में, कभी तीन दिन के उपवास के बाद में कभी चयनिका ] [ xix
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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