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________________ पमज्जिया = पोंछकर । णो= नहीं । वि= भी । य= और । कंडुयए= खुजलाते हैं-खुजलाते थे । मुणी=मुनि । गातं = शरीर को। 111 अप्पं (अ)= नहीं तिरियं (तिरिय) 2/1 पेहाए (पेह) संकृ पिठो (अ)= पीछे की ओर उप्पेहाए (उप्पेह) संकृ बुइन (बुइन) भूक 7/1 अनि पडिभाणी (पडिभाणि) 1/1 वि पथपेही [(पथ)-पेहि) 1/1 वि] चरे (चर) व 3/1 सक जतमारणे (जत) वकृ 1/1 111 अप्पं नहीं। तिरिय= तिरछे को। पेहाए-देखकर । पिट्ठओ= पीछे की ओर। उप्पेहाए = देखकर । वुइए=संवोधि किए गए होने पर । पडिभाणी-उत्तर देने वाले। पथपेही मार्ग को देखने वाला। चरे-गमन करते हैं--गमन करते थे। जतमाणे = सावधानी बरतते हुए। 112 प्रावेसण-सभा-पवासु [(आवेसण)-(सभा)-(पवा) 7/2] पणियसालासु (परिणयसाल) 7/2 एगदा (अ) = कभी वासो (वास) 1/1 अदुवा (अ) = अथवा पलियबाणेसु (पलियट्ठाण) 7/2 पलालपुजेसु [(पलाल)-(पुज) 7/2] 112 आवेसण-सभा-पवासु= शून्य घरों में, सभा भवनों में । प्याउओं में । पणियसालासु= दुकानों में । एगदा= कभी । वासो रहना । अदुवा= अथवा । पलियारणेसु= कर्म स्थानों में। पलालपुजेसु = घास-समूह में । वासो= ठहरना। 113 आगंतारे (आगंतार) 7/1 आरामागारे [(आराम) + (पागार)] [(आराम)-पागार) 7/1] नगरे (नगर) 7/1 वि (अ)= भी एगदा (अ)= कभी वासो (वास) 1/1 सुसाणे (सुसाण) 7/1 सुग्णागारे [(सुण्ण)+(आगारे)] [(सुण्ण)-(आगार) 7/1] वा (अ) तथा ___ रुक्खमूले [(रुक्ख)-(मूल) 7/1] वि (अ) = भी 113 आगंतारे- मुसाफिर खाने में। आरामागारे बगीचे में (वने हुए) चयनिका ] [ 143
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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