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________________ णाभिपत्यए [(ण)+ (अभिपत्थए) ण (अ)=नहीं. अभिपत्याए (अभिपत्य) विधि 2/1सक 94 तुमंतू । सि=है। णाम= निस्सन्देह । चेव= ही। तंवह । जं= जिसको। हंतव्वं = मारे जाने योग्य । ति=देव । मण्णसि = मानता है। अज्जावेतव्वं = शासित किए जाने योग्य । परितायेतव्यं = सताए जाने योग्य । परिघेतव्वं गुलाम बनाए जाने योग्य । उद्दयेतव्यं = अशान्त किए जाने योग्य । अंजू =सरल । चेयं-ही। पडियुद्धजीवीजागरूक (होकर) जीने वाला । तम्हा-इसलिए । ण=न । हता= हिंसा करने वाला । विही। घातए दूसरों से हिंसा करवाता है । अणुसंवेयणमप्पागणं [(अणुसंवेयरणं)+अप्पारणेणं)] भोगना, अपने द्वारा। जं= जिसको । हंतव्वं मारे जाने योग्य । णामिपत्यए = [(ए)+ (अभिपत्यए)]= मत, इच्छा कर 95 जे (ज) 1/1 सवि आता (प्रात) 1/1 से (त) 1/1 सवि विप्णाता (विण्णातु) 1/1 वि जेण (ज) 3/1 स विजाणति (विजारए) व 3/1 सक तं (त) 2/1 स पडुच्च (अ) प्राचार बनाकर पडिसंखाए (पडिसंखा) व 3/1 सक एस (एत) 1/1 सवि आतावादी (आतावादि) 1/1 वि समियाए (समिया) 6/1 परियाए (परियाअ) 1/1 वियाहिते (वियाहित) भूक 1/1 अनि ति (अ) इस प्रकार वेमि (बू) व 1/1 सक 95 जे=जो । आता-आत्मा । से वह । विण्णाता=जानने वाला । जेण = जिससे । विजाणति = जानता है। तं =उसको । पडुच्च=आधार बनाकर । पडिसंखाएव्यवहार करता है। एस-यह । आतावादीआत्मवादी । समियाएसमता का । परियाए = रूपान्तरण । वियाहिते = कहा गया । ति=इस प्रकार । बेमिकहता हूँ। 96 आणाणाए (अणाणा) 7/1 एगे (एग) 1/2 सवि सोवहाणा [(स)+ 134 ] [ आचारांग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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