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________________ 90 जं (ज) 1/1 सवि सम्मं (सम्म) 1/1 सि (प्र)=इस प्रकार पामहा' (पास) विधि 2/2 सक तं (त) 1/1 मवि मोणं (मोण) 2/1 ति (अ)-अतः जं (ज) 1/1 सवि मोणं (मोरण) 2/1 ति (प्र)-इस प्रकार तं (त) 1/1 सवि सन्म (सम्म) 2/1 ति (अ)-प्रतः 90 जंजो । सम्म=समता । ति= इस प्रकार । पासहा=जानो। तं= वह । मोणं मौन को-मीन में। ति =ग्रतः । पामहासमनो। जंजो । मोणं मौन को-मोन में। ति= इस प्रकार। पासहा= जानो । तंवह । सम्मं समता को-समता में । ति-प्रतः। पासहा-समझो। 91 उण्णतमाणे [(उण्णत')-(माण) 7/1] य (अ) ही परे (गर) 1/1 महता (महता) 3/1 वि अनि मोहेण (मोह) 3/1 मुमति (मुज्न) व 3/1 अक 91 उग्णतमाणे-उत्थान का, अहंकार होने पर । य-ही। गरे मनुष्य । महता तीव्र । मोहेण=मोह के कारण । मुज्झति = मूढ बन जाता है । 92 वितिगिछसमावन्नेणं [(वितिगिछ)-(समावन्न) 3/1 वि] अप्पारण 1. क्रिया के आज्ञाकारक रूप में अन्तिम 'अ' को दीर्घ किया जाता है। (पिशल: प्रा. भा. व्या. पृष्ठ, 136) 2. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 3. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हम प्राकृत व्याकरणः 3-137) 4. यहाँ 'उण्णत' शब्द संज्ञा है। विभिन्न कोश देखें। 5. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग __ पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण 3-137) 132 ] [ आचारांग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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