SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अहातहा उचित प्रकार से । लोग = लोक को।उघेहमाणा= जानते हुए। पाईणं = पूर्व दिशा को-पूर्व दिशा में। पडीणं = पश्चिम दिशा को पश्चिम दिशा में। दाहिणं = दक्षिण दिशा को दक्षिण दिशा में। उदी] = उत्तर दिशा को उत्तर दिशा में । इति = अतः। सच्चंसि (सच्च) 7/1 परिविचिद्विसु-स्थित हुए। 81 गुरू (गुरु) 1/1 वि से (त) 6/1 स कामा (काम) 1/2 तत्तो (अ) = इसलिए से (त) 1/1 सवि मारस्स (मार)6/1 अंतो (अंत) 1/1 वि जतो (अ) = चूंकि से (त) 1/1 सवि दूरे (अ)= दूर 81 गुरू =तीव्र । से- उसकी। कामा= इच्छाएँ । ततो इसलिए । से वह । मारस्स-अनिष्ट, अहित । अंतो- समीप । जतो= चूंकि । से वह । मारस्स= अनिष्ट, अहित । अंतोसमीप । ततो इसलिए। से वह । दूरे-दूर। 82 रणेव = नहीं से (त) 1/1 वि अंतो (अंत) 1/1 वि दूरे (अ)-दूर से(त) 1/1 वि पासति (पास) व 3/1 सक फुसितमिव [(फुसितं)+ (इव)] फुसितं (फुसित) 1/1 इव (अ)= की तरह कुसग्गे ! (कुस)+ (अग्गे)] [(कुस)-(अग्ग) 7/1] पणुण्ण (पणुण्ण) भूकृ 1/1 अनि गिवतितं (णिवतित) भूकृ 1/1 अनि वातेरितं [(वात)+(ईरित)] [(वात+ (ईरित)भूकृ 1/1 अनि)] एवं (अ) = इस प्रकार बालस्स (बाल) 6/1 वि जीवितं (जीवित) 1/1 मंदस्स' (मंद 6/1 वि अविजाणतो (अवि जाण) पंचमी अर्थक 'तो' प्रत्यय । 82 रणेव = नहीं । से= वह । अंतो= समीप रणेव = नहीं । से=वह । दूरे = दूर । से = वह । पासति = देखता है । फुसितमिव [(फुसित)+ (इव)] = जल-विन्दु, की तरह । कुसग्गे [(कुस) + (अग्गे)]=कुश के, नोक पर । 1. पणण्ण- (पणुन्न) भूक । 2. 'गमन' अर्थ में द्वितीया होती है। 3. कभी कभी षष्ठी विभक्ति का प्रयोग तृतीया विभक्ति के स्थान पर होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-134) 128 ] [ आचारांग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy