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________________ 1/2 सवि णिन्वुडा (रिणव्वुड) भूक 1/2 अनि पहि' (पाव) 3/2 कम्मेहि' (कम्म) 3/2 अणिदाणा (अणिदाण) 1/2 वि ते (त) 1/2 सवि वियाहिता (वियाहित) भूकृ 1/2 अनि तम्हाऽतिविज्जो [(तम्हा) +(अतिविज्जो)] तम्हा-इसलिए अतिविज्जो (अतिविज्ज) 1/1 वि णो मत पडिसंजलेज्जासि (पडिसंजल) विधि 2/1 सक ति (अ)= इस प्रकार वेमि (बू) व 1/1 सक 77 विगिच = छोड़ । कोहं = क्रोध को । अविकंपमाणो= निश्चल रहता हुआ। इमं = इस को । निरुद्धाउयं [(निरुद्ध)+ (प्राउयं)] सीमित, आयु । सपेहाए = समझकर। दुक्खं दुःख को। च= और । जाण= जान । अदुवागमेस्सं [(अदुवा)+ (आगमेस्स)] अथवा, आगामी को । पुढो= विभिन्न । फासाई = दुःखों को। च= तथा । फासे प्राप्त करता है। लोयं = लोक को । च=और । पास = देख । विष्फंदमाण = तड़फते हुए। जे-जो । णिचुडा=मुक्त । पार्वेहि = पापों द्वारा-पापों से । कम्मेहि= कर्मों द्वारा→कर्मों से। अणिदाणा=निदानरहित । ते=वे। वियाहिता= कहे गये। तम्हाऽतिविज्जो [(तम्हा) + (अतिविज्जो)] इसलिए, महान ज्ञानी। णो मत । पडिसंजलेज्जासि = उत्तेजित कर। ति= इस प्रकार । वेमि = कहता हूँ। 78 ऐहि' (णेत्त) 3/2 पलिछिण्णेहिं (पलिछिण्ण) भूकृ 3/2 अनि आताणसोतगढिते [(आताण)-(सोत)-(गढित) 1/1 वि] वाले (बाल) 1/1 वि अन्वोच्छिण्णवंधणे [(अब्बोछिन्न) वि-(वधण) 1/1] अणभिक्कं तसंजोए [(अणभिक्कंत) वि-(संजो) 1/1] तमंसि (तम) 7/1 1. कभी कभी पंचमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-136) 2. पिशल : प्राकृत भाषाओं का व्याकरण : पृ. 681. 3. कभी कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 4. यहाँ 'आयाण' पाठ होना चाहिए। चयनिका ] [ 125
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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