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________________ [ ( इच्छा ) - (पणीत ) भूकृ 1/2 श्रनि) वंकाणिकेया [ अंक (का) - -- → (णिकेय 1 / 2] कालग्गहीता | (काल) - (ग्गहीत ) भूकृ 1/2 श्रनि ] णिचये ( णिचय) 7/1 णिविट्ठा (रिगविट्ठ) 1/2 वि पुढो पुढो (प्र) = श्रलग लग जाई (जाइ) 2/1 पकप्पैति (पकप्प) व 3/2 सक --- 74 णाणागमो [ (णा) + (श्रणागमो ) ] नहीं, न श्राना । मच्चुमुहस्स = मृत्यु (के) मुख का मुख में । अस्थि = है । इच्छापणीता = इच्छात्रों द्वारा, उपस्थित | वंकाणिकेया = कुटिल, घर । कालग्गहोता = मृत्यु (के द्वारा ) पकड़े हुए। णिचये = संग्रह में । णिविट्ठा = श्रासक्त | पुढो पुढो - अलग अलग । जाई = जन्म को । पकप्पैति = धारण करते हैं । वि श्रणुवियि = अणुविइ सक शिक्खित्तदंडा 75 उवेहेणं [ ( उबेह) + (इणं)] उवेह ( उवेह) विधि 2 / 1 सक इ ( इम) 2 / 1 सवि वहिता ( अ ) = वाहर य ( अ ) = ओर लोक (लोक) 2/1 से (त) 1 / 1 सवि सव्य लोकंसि [ ( सव्व ) - ( लोक 7/1] जे (ज) 1/1 सवि केइ (श्र) = कोई विष्णु (विष्णु) 1 / 1 ( अ ) = बड़ी सावधानी से पास ( पास ) विधि 2 / 1 [ (रिक्खित्त) भूकृ अनि = (दंडा ) 1 / 2] जे (ज) 1 / कोइ सत्ता (सत्त) 1/2 पलियं (पलिय ) 2 / 1 चयंति (चय) व 3 / 2 सक परा (गर) 1/2 मुतच्चा [ ( मुत) = (प्रच्चा ) ] [ ( मुत भूकृ अनिअच्चा ) 1 / 2] धम्मविदु [ ( धम्म) = ( विदु) भूलशब्द 1/2 वित्ति (अ) = और अंजू (अंजू ) 1/2 वि आरंभजं (प्रारंभज 1 / 1 वि दुक्खमिण 1 सवि केइ ( ) = 1. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर हस्व हो जाते हैं । (हेम प्राकृत व्याकरण: 1-4) 2-3. कभी कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण: 3-137) 122 ] [ आचारांग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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