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________________ उवेहमाणो (उवेह) वकृ 11 सद्द-स्वेसु' [(सद्द)-(रुव) 7/2] अंजू (अंज) 1/1 वि मारामिसंकी [(मार) + (अगिरांनो)] [(मार)(अभिसंकि) 1/1 वि] मरणा (मरण) 5/1 पमुच्चति (पमुच्चति) व कर्म 3/1 सक अनि 53 पासिय=देखकर । आतुरे पीड़ित को। पाणे-प्राणियों को । अप्पमत्तो -अप्रमादी। परिव्वए = गमन कर। मंता= चीखते हुए । एयं = इसको । मतिमं-हे बुद्धिमान् । पास = देख । प्रारंभ-हिंसा से उत्पन्न होने वाली । दुवखमिणं [(दुक्खं)+ (इणं)]= पीड़ा, यह । ति= इस प्रकार । णच्चा=जानकर । मायो= माया-युक्त । पमायीप्रमादी । पुणरेति = बार बार आता है। गन्भं गर्भको-गर्म में। उवेहमाणो- उपेक्षा करता हुआ । सह-रूवेसु = शब्द और रूप में-शब्द और रूप की। अंजू =तत्पर । माराभिसंकी (मार)+ (अभिसंकी)] =मरण (से), डरने वाला । मरणा- मरण से । पमुच्चति = छुटकारा पा जाता है। 54 अप्पमत्तो (अप्पमत्त) 1/3 वि कामेहि (काम) 3/2 उवरतो (उवरत) भूकृ 1/1 अनि पावकम्मेहि' [(पाव)-(कम्म) 3/2] वीरे (वीर) 1/1 वि पातगुत्ते [(आत)-(गुत्त) 1/1 वि] खेयण्णे (यण्ण) 1/1 वि जे (ज) 1/1 सवि पज्जवजातसत्यस्स [(पज्जव)-(जात)-(सत्य) 6/1] खेतण्णे (खेतण्ण) 1/1 वि से (त) 1/1 सवि असत्थस्स (असत्य) 6/1। 54 अप्पमत्तो-मूर्छा रहित । कामेहि = इच्छाओं द्वारा ।-→इच्छाओं में । 1. कभी कभी द्वितीया के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 2. कभी कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। (हम प्राकृत व्याकरण : 3-137) 3. कभी कभी पंचमी के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है। (हेम प्राकृत व्याकरण 3-136) 110 ] [ आचारांग
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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