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1 / 1] णालं [ ( ण + ( श्रलं )] ण = नहीं श्रलं ( ) == कोई लाभ नहीं पास (पास) विधि 2 / 1 सक ते ( तुम्ह) 4 / 1 स एतेहि (गत ) 3/2 एतं (एव) 2 / 1 मुणि ( मुणि) 8 / 1 महत्भयं (मभयं ) 1 / 1 णातिवातेज्ज [ (ण) + (प्रतिवातेज्ज) ] ण मत 1 अतिवातेज्ज'
प्रेरक
( श्रतिवत प्रतिवात) विधि 2 / 1 सक कंचणं ( ) = किसी भी तरह | 40 उदाहु = कहा | वीरे = महावीर ने । श्रप्पमादो = प्रमादरहित । महामोहे: घोर श्रासक्ति में | अलं = पर्याप्त । कुसलस्स = कुशल के लिए । पमादेणं: प्रमाद ( के विना ) । संतिमरणं = शान्ति, मरण को । सपेहाए = देखकर । मेउर धम्भं ==नखर, स्वभाव को । णालं [ (ण) + (अलं)] = नहीं, कोई लाभ नहीं । अलं = कोई लाभ नहीं । ते = तेरे लिए । एतेहि = इन से । एतं = इस को । पास = सीख । महत्भयं = महाभयंकर । णातिवातेज्ज [(ग) + प्रतिवातेज्ज) ] = मत मार | कंचणं = किसी भी तरह ।
41 एस (एत) 1 / 1 सवि वीरे (वीर) 1 / 1 पसंसिते ( पसंसित) भूकृ 1 / 1 अनि जे (ज) 1 / 1 सवि । ण ( अ ) = नहीं । णिविवज्जति ( णिन्विज्ज) व 3 / 1 ग्रक आदाणाए (श्रादाण - श्रादाणा ) 5 / 1
41 एस = वह । वोरे = वीर । पसंसित = प्रशंसित । जे जो ।
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ण= नहीं | णिग्विज्जति = दूर होता है । आदाणाए = संयम से । 42 लाभो (लाभ) 1 / 1 ति ( प्र ) = शब्दस्वरूपद्योतक ण ( प्र ) = नहीं मज्जेज्जा (मज्ज) विधि 2 / 1 ग्रक अलाभो (लाभ) 1 / 1 सोएज्जा (सोत्र ) विधि 2 / 1 अक बहुं (बहु) 2 / 1 वि पि (ध) = भी लघुं (लघु) संकृ अनि हेि (हि) 1/1 वि परिग्गहाओ (परिग्गह) 5/1 अप्पा (अप्पाणा) 2 / 1 श्रवसक्केज्जा ( श्रवसक्क) विधि 2 / 1 सक अण्णा ( अ ) = विपरीत रीति से णं (त) 2 / 1 स पासए (पासा) 1 / 1 वि परिहरेज्जा (परिहर) व 3 / 1 सक
42 लाभो = लाभ | णन | मज्जेज्जा = मद कर । अलाभो हानि ।
1. प्राकृतमार्गोपदेशिकाः पृ. 320
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[ आचारांग