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________________ 18. अट्ट = पीड़ित । लोए = मनुष्य । परिजुण्णे = दरिद्र । दुस्संवोधे = ज्ञान देना कठिन । प्रविजाणए = समझने वाला नहीं । अस्सि लोए = इस लोक में । पन्वहिए =अति दुःखी। 19. जाए (जा) 3/1 स सद्धाए (सद्धा) 3/1 णिक्खंतो (णिक्खंत) भूक 1/1 अनि तमेव [(तं)+(एव)] तं (त) 2/1 स. एव (अ) ही अणुपालिया (अणुपाल) संकृ विजहित्ता (विजह) संकृ विसोत्तियं (विसोत्तिय) 2/1 19. जाए = जिससे । सद्धाए प्रवल इच्छा से । णिक्खंतोनिकला हुआ। तमेव (तं+एव) = उसको ही । अणुपालिया=बनाए रखकर । विजहिता छोड़कर । विसोत्तियं = हिंसात्मक चिन्तन को। . 20. पणया (पणय) भूक 1/2 अनि वीरा (वीर) 1/2 महावीहि = कभी कभी द्वितीया विभक्ति का प्रयोग सप्तमी के स्थान पर होता है । (है. प्रा. व्या. 3/135) (महावीहि) 2/1 20. पणया = झुके हुए । वीरा=वीर । महावीहिं महापथ को महापथ पर । 21. लोगं (लोग) 2/1 च (अ) = अच्छी तरह से आणाए (प्राणां) 3/1 अभिसमेच्चा (अभिसमेच्चा) संक अनि अकुतोभयं (अकुतोभय) 2/1 वि से (अ) = वाक्य की शोभा बेमि (बू) व 1/1 सक रणेव (अ) = कभी न सयं (अ)=स्वयं लोगं (लोग) 2/1 अन्भाइक्खेज्जा (अभाइक्ख) विधि 3/1 सक अत्तारणं (अत्ताण) 2/1 जे (ज) 1/1 सवि अब्भाइक्खति (अन्भाइक्ख) व 3/1 सक से (त) 1/1 सवि 21. लोग =प्राणी-समूह को। च = अच्छी तरह से । आणाए =प्राज्ञा से । अभिसमेच्चा =जानकर । अकुतोभयं =निर्भय । से= वाक्य की शोभा । बेमि = कहता हूं । रणेव = कभी न । सयं = स्वयं । लोग=प्राणी-समूह पर। अब्भाइक्खेज्जा झूठा आरोप. लगाये । अत्तारणं निज पर । जेजो। अब्भाइक्खति= झूठा आरोप लगाता है । से= वह । 88 ] [ चयनिका
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
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