SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 105
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 123 जैसे ( कवच से ढका हुआ योद्धा संग्राम के मोर्चे पर ( रहता है), (वैसे ही) वे महावीर वहाँ (लाढ़ देश में) कठोर ( यातनात्रों) को सहते हुए (ग्रात्म-नियन्त्रित रहे) (और) (वे) भगवान् ( महावीर ) अस्थिरता - रहित (बिना डिगे) विहार करते थे I 124 और दो मास से अधिक अथवा छः मास तक भी (वे ) (कुछ) नहीं पीते थे। रात में और दिन में (वे) सदैव राग-द्व ेषरहित (समतायुक्त ) ( रहे ) । कभी - कभी ( उन्होंने ) बासी ( तन्द्रालु) भोजन ( भी ) खाया | 125 कभी (वे) दो दिन के उपवास के बाद में, तीन दिन के उपवास के बाद में, अथवा चार दिन के उपवास के बाद में भोजन करते थे । कभी (वे) पाँच दिन के उपवास के बाद में भोजन करते थे । (वे) समाधि को देखते हुए निष्काम (थे) 1 126 वे महावीर ( श्रात्म-स्वरूप को ) जानकर स्वयं भी बिल्कुल पाप नहीं करते थे (तथा) दूसरों से भी पाप नहीं करवाते थे (श्रौर) किए जाते हुए (पाप का ) अनुमोदन भी नहीं करने थे । 127 गाँव या नगर में प्रवेश करके भगवान् (महावीर ) ( वहाँ) दूसरों के लिए (गृहस्थ के लिए) बने हुए आहार की (ही) भिक्षा ग्रहण करते थे । ( इस तरह) सुविशुद्ध प्रहार की भिक्षा ग्रहण करके (वे) संयत (समतायुक्त ) योगत्व से ( उसको) उपयोग में लाते थे । 128 ( महावीर ) कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ ) - रहित (थे ), ( उनके द्वारा ) लोलुपता नष्ट करदी गई (थी), (वे) चयनिका ] 1 73
SR No.010767
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharang Sutra Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1987
Total Pages199
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Grammar, & agam_related_other_literature
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy