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________________ प्ररूपणा को पाछी खींच कर मेरे साथ शास्त्रार्थ बंध रखनेका साबित हो गयाधा. इसलिये मैं इन्दोर शास्त्रार्थ के लिये नहीं आया था. अभीभी ऊपर मुजब श्रीमान् विजयधर्म सृरिजी अपनी सही से प्रतिज्ञा जाहिर करें तो मैं इन्दोर शास्त्रार्थके लिये आनेको तैयार हूं. उन्हों के शिष्योंमें से कोईभी शास्त्रार्थ करे, मेरेको मंजूर है. . गझे उपर मुजब प्रतिज्ञा मंजूर है, उन्होंको मंजूर हो तो सही भेजें, मैं तैयार हूं. फजूल अनुभवी के नाम से झूठा लेख छपवाना किसीको योग्य नहीं है. . . : विशेष सूचना-श्रीमान् विद्याविजयजी ! सही करके न्याय से धर्मवाद करने की ताकत होती तो छल प्रपंच से झूठे लेख. छपवाकर लोगों को भ्रम में गेरने का साहस कभी न करते और शुष्क वितंडवाद छोडकर श्रीगौतमस्वामी, श्रीकेशीस्वामी महापुरुषों की तरह लोगों की शंका और विसंवाद दूर करने के लिये न्याय से शुद्ध व्यवहार करते. विशेष क्या लिखें. सम्बत् १९७८ फागण वदी ११बुधवारं.. . . . हस्ताक्षर मुनि-मणिसागर, मालवा खाचरोद. .. यह उपर का पत्र भी खाचरोद से इन्दोर उन्होंको . रजोष्टरी से भिजवाया था (उसकी पहुंच भी आंगई है) इस पत्रका भी कुछ भी जवाब नहीं दिया, मौन होकर बैठे. हम खाचरोदसे विहार कर बदनावर • गये, वहां से भी पोष्ट कार्ड रजीष्टरी से भेजा . उसकी नकल यह है. श्रीमान् विजयधर्म सुरिजी योग्य मुखशातापूर्वक निवेदन. मैंने खाचरोद से रजीष्टर पत्र भेजा था वह आपको पहुंचा होगा, वहां से विहार कर आज ईधर आये हैं, यहां से विहार कर बडनगर होकर फागण शुदी १३ को या चैत्र वदी २-३ को इन्दोर आप से शास्त्रार्थ करने के लिये आते हैं. आप विहार न करें. .
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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