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________________ [८] है, अतएव देवंद्रव्यके भक्षण या विनाशसे अनंत संसार परिभ्रमणका भय रखनेवाले आत्मार्थियों को उचित है, . कि स्वप्न, और पालना वगैरह के . देवद्रव्य को साधारण द्रव्य समझकर किसी प्रकारसे अंशमान भी अपनें या अन्य के उपयोगमें लानका विचारमात्र भी न करें. ... :- : १४ अगर कहा जाय कि स्वप्न उतारने वगैरह - कार्य करने के पहिलेसेही शुरूवातमें उसका द्रव्य देवद्रव्यमें नहीं ले जानेका और साधारण खातेमें ले जानेका ठहराव कर दिया जाये तो पीछे कोई दोष नहीं आवेगा. यह कहना भी अंन समझका ही है क्योंकि भगवान् की 'भक्तिमें कोई भी कल्पना नहीं हो सकती. जिसपरभी वैसा करे तो वो भगवान् की भक्ति नहीं, किंतु धर्मठगाई की धूताई कही जायगी: भगवान् की भक्तिमें अर्पण करी हुई वस्तु आत्म कल्याण मोक्षरूप. फल देने वाली है, उसमें अन्य कल्पनाकरनी अनुचित है. देखिये किसी श्रावकने अपने द्रव्यसे लाखों या करोडों रुपये खर्च करके मुकुटादि आभूषण बना कर भगवान्को अर्पण करदिये होवें वो सब देवद्रव्य हो जानेसे उसको काम पडे तब अपने या अन्य के उपयोग में लेने की - पहिले करी हुई : कल्पना नहीं चल सकती. वैसे ही स्वप्नादिकका द्रव्य भी भगवान् वीर प्रभु परमात्मा को अर्पण होता है वो सब देवद्रव्य हो जाने - से उसमें पहिले करी हुई कल्पना कभी नहीं चल सकती. जिसपरभी अज्ञानवश कोई वैसा करेगा तो भगवान् से धर्मठगाई करनका व देवद्रव्य के भक्षण करने का दोपी बनेगा. . . . . . . " १५ एक ही द्रव्यका उपयोग भगवान् की भक्तिमें या साधारण खाते में एक जगह पर हो सकेगा मगर दोनों जगह पर नहीं हो सकेगा. उसी द्रव्यसे भगवान् की भक्तिका लाभ ले लेना और उसी द्रव्यसे साधारण खाते का भी लाभ ले लेना यह कभी नहीं बन सकता. इसलिये भगवान्की भक्तिका लाभ लेना होतो साधारण खाते के लाभ लेने की आशा छोड दो
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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