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________________ [४] ५ भगवान् के माता पिता जो उत्सव करते हैं, वह तीर्थकर भगवान् वीतराग प्रभुकी भक्ति के लिये नहीं करते, किंतु ऐसा गुणवान् हमारे पुत्र हुआ है; हमारे कुलका उद्योत करेगा; हमारे कुलकी वृद्धि • करेगा, इत्यादि गुणोंसे अपने पुत्रकी प्रीति से जन्मादि उत्सव करते हैं. और अपन लोग जो च्यवन कल्याणक संबंधी स्वप्न उतारने वगैरह का उत्सव करते हैं, वह राज्यपुत्र जानकरके राजकुमारकी भक्ति के लिये नहीं करते, किंतु तीर्थंकर भगवान् जानकर ऊपर मुजब वीतराग प्रभुके गुणोंकी भक्ति के लिये करते हैं. इसलिये भी उस संबंधी जो द्रव्य आंवे वह द्रव्य देवद्रव्यरूप होनेसे मंदिरादिमें भगवान् की भक्ति में लगना योग्य है. जिसपरभी उस द्रव्यको साधारण खातेमें रखकर हरएक कार्यमें उपयोग करनेसे देवद्रव्यके नाशका और भक्षणका दोष आता है. ६ भगवान्का पालनामेंभी नारेल वगैरह रखकर वीरप्रभुकी स्थापना करने में आती है, पीछे भगवान् के पालने के नामसे चढावा होता है. पालने का चढावा लेनेवाले भी भगवान्का पालना समझकर चढावा लेते हैं मगर राजकुमारका पालना समझकर चढावा न तो किया जाता है, और न लियाही जाता है उससे उनका द्रव्य भी श्रीवीर प्रभुको अर्पण होता है. इसलिये वह देवद्रव्य ही गिना जाता है उनको साधारण खाते में कहना यह कितनी बडी अन्नसमझकी बात है.... . ..७ . जबतक भगवान् गृहस्थ. अवस्था में रहें, दीक्षा न लेवें, तब तक उन्हों के. माता. पितादिक अपना पुत्र समझकर उनसे अपने पुत्रका व्यवहार रखते हैं. दीक्षा लेने बाद उनके माता पिता भी भगवान् समझकर वंदन पूजनादि व्यवहार करते हैं मगर · भक्त जनों के आत्म कल्याण के लिये भगवान् की भक्ति करने में तो तीसरे भवमें तीर्थंकर नाम गौत्र बांधे तबसे ही वंदन. पूजनादि करने योग्य भगवान् हो चुके
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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