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________________ खिलाकर अनंत संसारी वनानकी भाव हिंसाका बडा भारी अनर्थ खडा किया है, इत्यादि कारणोंसे या तो 'पूजा, आरती के चढावे क्लेश निवा. रण के लिये व उसका द्रव्य देवद्रव्य नहीं हो सकता यह रिवाज अमुक समय असुविहित अज्ञानियोंने चलाया है, ' इत्यादि अपने विसंवादी झूठे कथन को साबित करके बतायें अथवा अपनी प्ररूपणा को पीछी खींचकर समाज की समाधानी करें अगर साबित करके न वतावें और पीछी भी न खींचे तथा हमेशा साल दरसाल जगह जगह पर विशेष क्लेश बढाते रहें तो ये यद्यपि विद्वान् व आचार्यपदधारक हैं और साहित्य का,प्रचार, जाहिर लेक्चर वगैरह कार्य करते हैं तो भी अभी व भविष्यमें शासनको हानिकारक होनेसे संबोनसनेके लायक नहीं हैं. इसबातका सर्व मुनिमंडल को और सर्व शहरों के सर्व संघको अवश्य विचार करना चाहिये, नहीं तो भविष्यमें जैसे स्थानकवासी व तेरापंथियों से मंदिरोंको, तीर्थोंको, व शासन को धक्का पहुंचा है, वैसेही इनसेभी पहुंचनेका कारण खडा होजावेगा और एकमत पक्ष जैसा होकर समाजमें हमेशा क्लेश होता रहेगा और देवद्रव्यकी बडी भारी हानि पहुंचेगी. उस पापके भागी [अपन क्यों बुरे बनें, करेगा सो पावेगा, ऐसी अभी] उनकी उपेक्षा करनेवाले होंगे. . . जैन शासनकी मर्यादा. . सर्वज्ञ वीतराग भगवान्के अविसंवादी शासन में कोईभी साधु अपनी मतिकी कल्पना से एक शब्द मात्रभी शासन की मर्यादाके विरुद्ध प्ररूपणा करता तो पहिले उसको समझाकर रास्तेपर लानेमें आता था, कभी समझाने परभी नहीं मानता और अपनी कल्पना का आग्रह नहीं छोडता तो उसको निन्हव करके संघबाहर करनेमें आताथा. फिर कोई भी जैनी उसका सन्मान,संसर्ग,वंदन, पूजनादि कुछभी व्यवहार नहीं करताथा, इसलिये अविसंवादी शासनकी मर्यादा बराबर चली आती थी. निन्हवोंका अधिकार उत्तराध्ययन और आवश्यकादि सूत्रोंकी टीकाओं में प्रसिद्ध
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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