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________________ श्री चतुर्विध सर्व संघको जाहिर बना. इन्दोरके संघने अपने शहरमें देवद्रव्यकी चर्चासंबंधी क्लेश बढानेवाले कोईभी हैंडविल छपवाने नहीं, ऐसा ठहराव करके ता. २३-१-२२ के. रोज एक हेडविल प्रकट किया था उसमें विजयधर्मसूरिजी जब तक इन्दोर में ठहरें तब तक अपने शिष्योंकी मार्फत केश बढानेवाले कोई भी हेडबिल नहीं छपवाने देंगे, ऐसा करार छपवाया था. वह इंदौर के संघका ठहराव तथा विजयधर्म सृरिजी का बचन करार इन दोनों बातोंका भंग हुआ. वैशाख शुदी १० के रोज उन्होंकी तर्फ से विद्याविजयजी के नामसे एक हेडबिल प्रकट हुआहै, उसमें साधु महात्माओंके अवाच्य और , अनार्य भापाके शब्द लिखे गये हैं उसका नमूना नीचे मुजव है: " प्रसिद्धी की इच्छा पूर्ण करने के लिये बहुत से मनुष्य क्या क्या नहीं करते ? लोग भले ही 'जीवराम भटके नातेदार' कहें, परंतु उस निमित्तसे भी प्रसिद्धी तो होगी. होली के त्योहार में कई लोग विचित्र वेप बनाकर प्रजापति के घोडोंपर क्यों चढते हैं ? इसलिये कि वे यह समझते हैं कि-इस निमित्तसे भी हमारी प्रसिद्धी तो होगी. हमको लोग राजा [ होलीका राजा ] कहेंगे. बस, इसी प्रकार जैन समाज में भी कई निरक्षर लोग प्रसिद्धी के लिये सिरतोड प्रयत्न कर रहे हैं. और खासं ' कर के देवद्रव्यकी चर्चा में ऐसे कई लोगोंने विलमें से मुंह निकाला है.' लेकिन ऐसे विन जोखमदार अल्लटप्पुओं के वचनोंपर जैन समाज कभी ध्यान नहीं दे सकती इत्यादि " और उसके नीचे वैशाख शुदी १५ के . रोज अपने स्थानपर मेरेको शास्त्रार्थ के लिये बुलानेका छापा है. इस हैंडबिल में देवव्यकी चर्चा में भाग लेनेवाले · सर्व आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणि, पन्यास व सर्व मुनिमंडल, उन सबको ऊपर के : विशेषण दिये हैं और सबकी बडी भारी अवज्ञा की है. इस हैंडबिल को.
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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