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________________ क्यों नहीं करते. मेरे पत्रकी बातोंका न्याय से खुलासा जबाब लिख सकते नहीं और अन्य अन्य आडी टेढी बातें लिखकर भोले जीवों को क्यों भ्रममें डालते हो ? २ मेरे गुरु महाराज श्रीमान् उपाध्यायजी श्री १००८ श्री मुमति सागरजी महाराजने जाहिर शास्त्रार्थ करना छोडकर खानगी में शास्त्रार्थ करनेका कहा ही नहीं है, व्यर्थ झूठ क्यों लिखते हो. और जाहिर शास्त्रार्थ करने की बात हो चुकी है उसीका पत्र व्यवहारभी छपचुका है, इसलिये खानगी अपने स्थानपर शास्त्रार्थ करनेको आपका कहना ही सर्वथा न्याय विरुद्ध होनेसे प्रमाणभूत नहीं हो सकता. ३ मेरे गुरु महाराजके समक्ष बहुत श्रावकों के सामने आपने दोनों पक्ष तर्फ के ४ साक्षी बनाकर शास्त्रार्थ करनेका कहा है. इस अपने बचन का पालन करना होतो दो साक्षीके नाम लिखो अगर क्षण क्षणमें बदलना ही चाहते हो तो आपकी मरजी. . ४ सत्य ग्रहण करने की और झूठका मिच्छामि दुक्कडं देनेकी सही हुएबिना जवान मात्रसे खानगीमें इसविषय की कोईभी बात नहोसकेगी. ५ आपकी सही व शास्त्रार्थ करनेवाले मुनिका और दो साक्षी का नाम जाहिर होनेसे तीसरी मध्यस्थ जगहपर नियमादि बनाने के लिये मैं आनेको तयार हूं. ६ आपका और मेरा प्रीतिभाव है इसलिये आपके. स्थानपर आते हैं, फिरभी आयेंगे मगर जाहिर रूपमें शास्त्रार्थ होनेका ठहर गया है; इसलिये इसविषयमें खानगी बातें करने के लिये मैं नहीं आसकता. ७ वैशाख सुदी १ के रोज पर्युपणा संबंधी शास्त्रार्थ वाल मेरे लिखे हुये पहिले के पोष्ट कार्ड के अधूरे अधूरे समाचार लोगोंको. वतलाकर आप उलटा पुलटा समझाने लगे, जब एक विदेशी श्रावक : मध्यस्थपने उस लेखका सत्य भावार्थ बतलाने लगा, तब आपने उसके
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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