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________________ :. को शास्त्रार्थ करवाने का कहा ही नहीं है. दाल नहीं गलनेका झूठ क्यों लिखते हों. शास्त्रार्थ से पीछे हटकर अपनी अयोग्यता कौन दिखलाता. हैं, यह तो सब बातें प्रकट होनेसे इन्दोर का और सर्व शहरों का संघ अच्छी तरह से जान लेगा. मेरेको किसी तरह का क्रोध नहीं हैं, क्रोध की काइ बात लिखी भी नहीं है. इस लिये क्रोध का भी आप झूठ ही लिखते हो. शास्त्रार्थ की बातों के सिवाय अन्य कोईभी मैंने वैसी बात नहीं लिखी है. इस लिये जीभ लम्बी होने का भी आप झूठ ही लिखते हो. . . विशेष सूचना - व्यर्थ काल क्षेप और क्लेश के हेतु भूत आप के. ऐसे झूठे पत्रव्यवहार को वंव करिये. शास्त्रार्थ स्वीकार के सिवाय अन्य, फजूल बातों का जवाब आगेसे नहीं दिया जायेगा. अगर अपनी बात सच्ची समझते हो तो ३ रोज में मेरे पुत्रकी प्रत्येक बात का खुलासा और शास्त्रार्थ का स्वीकार करिये, नहीं तो सब पत्रव्यवहार और उसका निर्णय छपवाकर प्रकट किया जायेगा. उस में आपका झूठा आग्रह जंग जाहिर होगा, विशेष क्या लिखें. संवत् १९७९ वैशाख वदी ९. हस्ताक्षर मुनि-मणिसागर, इन्दोर.. : . ऊपर के तमाम पत्र व्यवहारसे सत्यके पक्षपाती पाठकगण अच्छी तरहसे समझ सकेंगे कि मेरे पत्रोंकी प्रत्येक बातोंका न्यायपूर्वक पूरापूराः जबाव देना तो दूर रहा; मगर एक वातका भी जवाब दे सके नहीं, और जैन पत्र में व हैंडबिल में मेरे लिये झूठी झूठी बातें छपवाकर समाज को उल्टा समझाया, मेरेपर झूठे आक्षेप किये, उसका मिच्छामि दुकडे भी दिया नहीं और अपनी प्ररूपंणा को शास्त्रार्थ में साबित करने की भी हिम्मत हुई नहीं. उससे शास्त्रार्थ करने की बातें करना छोड़कर
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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