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________________ लेनेकी आवश्यकता बतलाई है. अब सब बातें तै करनेका यहांके संघपर गेरकर आप अलग होनेकी चेष्टा करते हैं, यह भी अनुचित है. ५ आपकी तर्फसे चैत्र वदी ३ के पत्र में, मैं इन्दोर शास्त्रार्थ के लिये आया; उस बात को आप खुशीके साथ स्वीकार करते हैं, और मेरेसे ३ प्रश्न पूछेथे, उसका- उत्तर मेरी तरफ से आपको मिलने पर शास्त्रार्थ की अन्यान्य तयारियां करने करवाने का मंजूर करते हैं. जब ३ प्रश्नों के उत्तर मेरी तरफसे आपको मिल गये, तब आप. चुप बैठकर यहां के संघ को शास्त्रार्थ की तयारियां करवाने का मेरे अकेलेसे कहते हैं और आप अलग हो जाते हैं, यह भी अनुचित ही है.' ६ रतलाम से मैंने आपको रजिस्टर कार्ड भेजकर साफ खुलासा लिखाथा कि, आप लोगोंने इन्दोर के श्रावकों को सिखलाकर शास्त्रार्थ करनेका बंध रखवाया है, ऐसी अफवाह लोगोंमें सागरजीके वक्त फैलीथी. और यहांपर भी अब यही मालूम हुआ है कि शास्त्रार्थ में बहुत खर्चा. करना पडेगा व बहुत दिनतक शास्त्रार्थ चलनेसे उसकी व्यवस्था करनेमें लोगोंके संसारिक कार्योंमें बाधा पहुंचेगी और आपस में झगडा हो गया तो बडी मुस्कल होगी. हजारोंका खर्चा, 'हमेशा का विरोधभाव, बदनामी उठाना पडेगी इत्यादि बातों के भय से यहां का संघ इस शास्त्रार्थ को. नहीं चाहता. यह आपभी जानतेही होंगें फिर भी शास्त्रार्थ के लिये संघ पर गेरना; यह तो जानबुझकर शास्त्रार्थ उडानेका रस्तालेना योग्य नहीं है. __ . ७ देव द्रव्य संबंधी अपनी प्ररूपणा के आगेवान् आपही हैं, इस लिये इस विषय में आपके साथही शास्त्रार्थ करना युक्तियुक्त है. मैं • आपके साथही शास्त्रार्थ करना चाहता हूं. . मगर आप अपनी तरफ से किसीको भी शास्त्रार्थ के लिये ख़डा कर-सक्ते हैं. यह बात 'बहुत.दफे मैं आप को लिख चुका हूं, तो भी “ आप हमारे .किसी साधु से ही शास्त्रार्थ करना चाहते हैं" ऐसा झूठ लिखवाते हैं यह भी योग्य नहीं है,
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
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