SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 11
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० १ शास्त्रार्थ करने को किसी समुदायिक पक्ष तर्फस नहीं आया मगर - मध्यस्थ पक्ष में मेरी तर्फ से लोगों की शंका दूर करने के लिये शास्त्रार्थ करना चाहता हूं. i २ सत्य निर्णय ठहरे वह मेरेको मंजूर है, अन्य सत्य के अभिलापी जो सत्य देखेंगे वह ग्रहण करेंगे उन्होंकी खुशी की बात हैं. ३ मैं मेरे गुरु महाराज उपाध्यायजी श्रीमान् मुमतिसागरजी महाराज की आज्ञा में हूं, उन्होंके साथमें ही इन्दोर आया हूं, उन्होंकी इस विषय में शास्त्रार्थसे सत्य निर्णय करनेकी आज्ञा है. संवत् १९७८ चैत्र वदी ३ गुरुवार. हस्ताक्षर मुनि मणिसागर, इन्दोर. इन्दोर सिटी, चैत वढी ५ २४४८... श्रीयुत मणिसागरजी, आप पत्र का जवाब देने में इतनी शीघ्रता न करें कि, पत्र किसने लिखा है और किसको जवाब दे रहा हूं, इसका भी ख्याल न रहे । आप किसी समुदा . यह जान करके बडा ही आश्चर्य हुआ कि, यिक पक्ष की तर्फ से नहीं किंतु अपनी ही तर्फ से शास्त्रार्थ करने को आए हैं, और आपकी हार-जीत सिर्फ आप ही को स्वीकार्य है. जब ऐसी अवस्था है तो फिर आप के साथ शास्त्रार्थ करने का परिणाम क्या ? क्यों कि, आप जैन समाज में न ऐसे साधुओं' में गिने जाते हैं कि, जिस से आपकी प्रतिष्ठित एवं विद्वान् हार-जीत का प्रभाव है, इसलिये मैंने जान करके उपयोगपूर्वक ख्याल से विद्याविजयजी की कपटता जाहिर होने के लिये उनका नाम लिखा है, सब पन्नों में विशाल विजयजी का नाम कपटता से झूठाही लिखा है, मणिसागरः " * इसका समाधान उपर की फुट नोट में लिख चुका हूं, संणिसागर
SR No.010764
Book TitleDev Dravya ka Shastrartha Sambandhi Patra Vyavahar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherMuni Manisagar
Publication Year1922
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devdravya
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy