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________________ ८७२ भीमद् राजचन्द्र शुद्ध मयर पृष्ठलाइन ३३३-२६ वहाँ ३३३-२७दूर करना ३३३-३० जिसको......किया है ३३४-२६ मंदवाडमें ३३५-८ हमारे. ३३९-२९ अणहारा ३४०-३२ जीव पदार्थ किसीका ३४३-२४ कचित् ३४५-२६ अपने ३४९-१८ गुणोंमें ३५३-४ इच्छाकी ३५३-१९ उदासीन ३५४-१९ मांगना, उस प्राप्त किये हुए की ३५७-५,६,८,९त्रियों ३६१-२ आपके ३६१-२३ स्वभावमें ३६१-२५ यह भी ३६१-२६ उदयमें होने योग्य कारण है ३६२-२६ चित्त......प्रवृत्तिका ३६३-२. कवितार्थ ३६३-१०.संसारार्थ ३६९-११ अपूर्ण ३७९-३ आगापीछा ३८२-१ बहुतसे वर्तमानों ३८२-१६ सबके ३८३-१७ करानेके ३८२-१७ करनेके लिये ३८२-१७ करनेके लिये ३८२-१८होना चाहिये ३९१-२७ जिसे ४.१-२३ जिस तरह ४.१-२३ की हुई ४.१-१४ वैसे ४०१-१६ नहो ४१५-१४ यद्यपि......सकता है ४१९-५ माहाम्य ४३१-लक्षणरूप जो द्रव्यसंयम है ४११-१० रूप जो भावसंयम है उस वहां वियोग होनेपर भी करना जिसने......भाव किये है.. बीमारी अपने अणहारी जीव पदार्थको कोई कचित् हमारा दोषोंमें इच्छा और -उदास मांगना हो, उसको धर्म प्राप्त हुआ हैकि नहीं इस बात स्त्री आपके, सरल यह भी संभव है कि उदयका कारण हो चित्तका इच्छारूप कविता संसार अपूर्व एतराज बहुतसी घटनाओं सबकी मांगना करना करना होना जिससे यदि की जाय तो वह और इस तरह होने बतानेके पहिले तो कुछ सोचना पड़ता है। माहात्म्य रूप सकाम
SR No.010763
Book TitleShrimad Rajchandra Vachnamrut in Hindi
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
Author
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1938
Total Pages974
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, N000, & N001
File Size86 MB
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